टीम एबीएन, रांची। अग्रसेन पथ स्थित श्री श्याम मन्दिर में दिनांक 01 दिसंबर 2025 को मोक्षदा एकादशी महापर्व अत्यन्त श्रद्धा व भक्तिमय वातावरण में संपन्न हुआ। प्रातः काल से श्याम प्रभु के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। प्रातः आरती के पश्चात श्री श्याम प्रभु को नवीन वस्त्र (बागा) पहनाकर कर स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत कर विभिन्न प्रकार के फूलों से श्याम प्रभु का मनभावन श्रृंगार किया गया।
साथ ही मन्दिर में विराजमान बजरंगबली एवम शिव परिवार का भी इस अवसर पर विषेश श्रृंगार किया गया। रात्रि 9 बजे पावन ज्योत प्रज्वलित कर श्री श्याम मण्डल के सदस्यों द्वारा गणेश वन्दना के साथ संगीतमय संकीर्तन का शुभारम्भ किया।
मौके पर हारा हूँ बाबा बस तुझपे भरोसा है, जीतूंगा एक दिन, मेरा दिल ये कहता है, पलकों का घर तैयार साँवरे मेरी अखियाँ करें इन्तज़ार साँवरे, महलों जैसे ठाठ नहीं, धर देखने तो आओ रहना ना चाहो कम से कम, आज़माने आओ, शाम सवेरे देखु तुझको कितना सुंदर रूप है, तेरा साथ ठंडी छाया बाकी दुनिया धूप है, मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है... इत्यादि भजनों की लय पर भक्तगण श्री श्याम प्रभु की धुन में खोए हुए थे साथ ही भक्तगण पावन ज्योत में आहुति प्रदान कर मनवांछित फल की कामना कर रहे थे।
इस अवसर पर श्री श्याम प्रभु को विभिन्न प्रकार के फल - मिठाई - मेवा मगही पान व केसरिया दूध का भोग लगाया गया । रात्रि 12 बजे महाआरती व प्रशाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया। आज के इस कार्यक्रम को सफल बनाने में गोपी किशन ढांढनीयां, चन्द्र प्रकाश बागला, धीरज बंका, नितेश केजरीवाल, प्रदीप अग्रवाल, अमित जलान, प्रियांश पोद्दार, ज्ञान प्रकाश बागला, अजय साबू , लल्लू सारस्वत का सहयोग रहा। उक्त जानकारी श्री श्याम मण्डल श्री श्याम मन्दिर, अग्रसेन पथ रांची के मीडिया प्रभारी सुमित पोद्दार (9835331112) ने दी।
एबीएन सोशल डेस्क। श्री कृष्ण प्रणामी सेवा-धाम ट्रस्ट व विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है क्योंकि इसी दिन कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इस दिव्य घटना की स्मृति में हर वर्ष गीता जयंती मनाई जाती है।
इस वर्ष गीता जयंती का पर्व 1 दिसंबर दिन सोमवार को मनाया जाएगा। और संयोग से उसी दिन मोक्षदा एकादशी का व्रत भी रखा जाएगा।गीता केवल एक धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के हर पक्ष पर प्रकाश डालने वाली ऐसी शिक्षाएं हैं जो पांच हजार वर्ष पहले जितनी प्रासंगिक थीं, आज भी उतनी ही प्रभावशाली हैं। इसलिए इसकी जयंती मनाने का उद्देश्य केवल पूजा करना नहीं, बल्कि गीता के संदेशों को जीवन में उतारना है।
गीता जयंती का मूल उद्देश्य उस दिव्य उपदेश उपदेश-दिवस का स्मरण करना है, जिसने मानवजाति को धर्म, कर्तव्य, कर्मयोग और भक्ति की सर्वांगपूर्ण दिशा प्रदान की। महाभारत के भयंकर युद्ध से पूर्व अर्जुन मोह और संशय में डूब गए थे। तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें जो उपदेश दिया, वही आगे चलकर 700 श्लोकों के पवित्र ग्रंथ- श्रीमद्भगवद्गीता-के रूप में संकलित हुआ।
गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं,बल्कि जीवन- व्यवहार का शाश्वत मार्गदर्शन है। इसी कारण इस दिन को मनाकर समाज में ज्ञान, आत्मानुशासन, सत्य और कर्म के महत्व को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है।गीता जयंती का संदेश समय, समाज और परिस्थितियों से परे है। गीता बताती है कि मनुष्य को फल की चिंता किये बिना कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए- कर्मण्ये वाधिकारस्ते।
यह उपदेश व्यक्ति को निराशा से निकालकर आत्मबल, धैर्य और सकारात्मकता का संचार करता है। आज के तनावपूर्ण और प्रतिस्पर्धात्मक युग में गीता के सिद्धांत न केवल नैतिक मूल्यों को मजबूत करते हैं, बल्कि जीवन-प्रबंधन एवं मानसिक संतुलन के लिए भी अत्यंत उपयोगी हैं।साथ ही, गीता जयंती भारतीय संस्कृति की उस दिव्य धरोहर का उत्सव है जिसने विश्वभर में आध्यात्मिकता और दर्शन के क्षेत्र में भारत को विशिष्ट स्थान प्रदान किया।
विदेशों तक में यह दिन बड़े सम्मान और श्रद्धा से मनाया जाता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि गीता का संदेश संपूर्ण मानवजाति के लिए है। गीता जयंती के अवसर पर मंदिरों, आध्यात्मिक संस्थानों और गुरुकुलों में गीता पारायण, यज्ञ, धर्म-सभाएँ, व्यास-पीठ से प्रवचन, तथा कुरुक्षेत्र में विशाल गीता महोत्सव का आयोजन होता है।
कई विद्यालय और महाविद्यालय इस दिन गीता- वाचन, निबंध प्रतियोगिताएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर युवा पीढ़ी में नैतिक शिक्षाओं का प्रसार करते हैं। आध्यात्मिक उत्सवों के साथ-साथ यह दिन आत्ममंथन, सदाचार और सेवा–भाव को अपनाने का अवसर भी प्रदान करता है।गीता जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि चेतना को जागृत करने वाला आध्यात्मिक उत्सव है।
यह हमें जीवन के संघर्षों में संतुलन बनाए रखने, कर्तव्य को सर्वोपरि रखने और सत्य-अहिंसा-धर्म जैसे सार्वभौमिक मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है। गीता का संदेश जितना प्राचीन है, उतना ही आज के युग में प्रासंगिक और इसी सार्वभौमिकता के कारण गीता जयंती हर वर्ष नवचेतना का पर्व बनकर आती है।
एबीएन सोशल डेस्क। आज परम पुज्य आचार्य भगवन 1008 श्री रामलाल जी महाराज सा की आज्ञानुवर्ती शासन दीपिका समिया श्री जी महाराज सा का प्रवचन सुबह 9 बजे से शुभकरण बछावत के आवास पर हुआ। प्रवचन में साध्वी जी ने कहा कि परिग्रह एक बहुत बड़ा कारण है जिससे मनुष्य नर्क गति में जाता है। चीजों के प्रति हमें आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। जो वस्तुएं हमारे पास है उसको सबके बीच बांटना चाहिए।
जरुरत से ज्यादा सामान रखना सही नहीं है। चीजों के प्रति आसक्ति लोगों से अपनत्व कम करना है। इतने बड़े भूखंड के हिस्से में से सिर्फ पांच गांव की आसक्ति के कारण दुर्योधन ने महाभारत के युद्ध का आवाहन कर दिया। भगवान श्री कृष्ण वासुदेव के समझाने के बाद भी वो नहीं समझ पाया, अगर वो पांच गांव की आसक्ति छोड़ देता तो युद्ध नहीं होता और पूरा परिवार का नाश होने से बच जाता।
हमें सोचना है कि हमारा जीवन कितने में चल सकता है और उसी तरह के वस्तुएं अपने पास रखें और बाकि का त्याग करना चाहिए। प्रवचन में आगे बताया कि सिर्फ तीर्थ स्थानों में घूमने से और नदियों में स्नान करने से आत्मा का मैल नहीं धुलता है।
आत्मा की शुद्धता के लिए धर्म से हमें जुड़ना होगा और धर्म पूर्वक रहना होगा। हम दूसरो में शत्रु देखते हैं पर हम अपने ही सबसे बड़े शत्रु हैं। अपने कर्मों के कारण हम अपनी आत्मा को मलिन करते रहते हैं। क्रोध, मान, माया और लोभ जैसे आवरण से आत्मा को हमने ढंक रखा है। क्रोध को दूर करने के लिए शांत स्वाभाव अपनाना है। मान को दूर करने लिए विनय स्वाभाव की जरूरत है। झगड़ों का मुख्य कारण अपनी बात नहीं छोड़ना है।
सामने वाले के विचार सुन कर सम्यक निर्णय लेने चाहिए। मन में कुछ और जुबान पर कुछ और नहीं रखना है। आज के प्रवचन में साधुमार्गी जैन संघ से मोहन लाल पींचा, बीरेंद्र गेलड़ा, पुष्पा बछावत, विकास नाहटा, मनोज खजांची, रमेश ललानी, राकेश सुराणा आदि के अलावा काफी संख्या में श्रावक और श्राविकाएं उपस्थित थे।
एबीएन सोशल डेस्क। पारसनाथ से खंडगिरी उदयगिरी विहार के क्रम में परमपूज्य 108 श्री सुतीर्थ सागर जी महाराज अपर बाजार रांची में विराजमान हैं। प्रात: 8.15 बजे मुनिश्री का प्रवचन प्रारंभ हुआ। कषाय आत्मा को जकड़ लेती है या आत्मा को दुख देती है। कषाय चार मुख्य विकारों या नकारात्मक भावनाओं को संदर्भित करता है : क्रोध, मान, माया, और लोभ। ये आत्मा के स्वाभाविक गुणों (जैसे शांति, ज्ञान) को दूषित करते हैं। आत्मा एक शुद्ध, चेतन तत्व है जिसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है।
जब कोई व्यक्ति क्रोध, अहंकार, छल या लालच जैसी भावनाओं में उलझा रहता है, तो वह कर्म (अच्छे या बुरे) करता है। इन कर्मों के कारण नये कर्म बंधन आत्मा से जुड़ जाते हैं, जिससे आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र में फंस जाती है। ये कषाय आत्मा की शांति और शुद्धता को नष्ट कर देते हैं, ठीक वैसे ही जैसे रस्सी किसी वस्तु को कसकर बांध देती है। जैन दर्शन में कषायों पर विजय पाने, या इन्हें कम करने, पर बहुत जोर दिया जाता है ताकि आत्मा मुक्त हो सके।
व्यक्ति जब क्रोध करता है तो उसकी बुद्धि उस समय काम नहीं करती और वह ऐसे कार्य कर जाता है जिससे उसे पूरा जीवन पछताना पड़ता है। क्रोध क्षण भर के लिए होती है लेकिन दुख पूरा जीवन सहना पड़ता है। मान का अर्थ होता है घमंड अगर व्यक्ति के अंदर मान आ जाए तो वह अपने सामने हर दूसरे व्यक्ति को अपने से छोटा समझता है। एक मायाचारी व्यक्ति कभी आत्मा का स्वरूप नहीं समझ सकता।
लोभ पाप का बाप है लोभ के कारण ही व्यक्ति पाप करता है। व्यक्ति अपना पेट नहीं पेटी भरता है क्योंकि पेट भरने के लिए बहुत कम समान चाहिए लेकिन पेटी भरने के लिए वह हमेशा 99 के चक्कर में रहता है। व्यक्ति परिवार के सदस्यों के लिए समय नहीं निकल पाता और उसका पूरा जीवन दुख से भरा रहता है ।
वर्तमान कार्यकरिणी के सदस्यों एवम् बाहर से आये अतिथिगण के अलावा अध्यक्ष प्रदीप बाकलीवाल, मंत्री जीतेंद्र छाबड़ा, माणकचंद काला, प्रमोद झांझरी, चेतन पाटनी, अरुण पाटनी, सुबोध जी बड़जात्या, मनोज जी काला, सौरभ विनायक्या, राजेश छाबड़ा और समाज के कई लोग धर्म सभा में उपस्थित थे। यह जानकारी मीडिया प्रभारी राकेश काशलीवाल ने दी।
आज परम पूज्य आचार्य भगवन 1008 श्री रामलाल जी महाराज सा की आज्ञानुवर्ती शासन दीपिका समिया श्री जी महाराज सा का प्रवचन सुबह 9 बजे से शुभकरण बछावत के आवास पर हुआ। प्रवचन में साध्वी जी ने कहा कि हमें अपनी बिजी लाइफ के बीच में समय निकालना चाहिए, अपनी आत्मा को मैली होने से बचना चाहिए। पांच इंद्रियों वाली यह मनुष्य काया हमें बहुत ही पुण्य कर्म करके मिली है।
हमारा धर्म अहिंसा होना चाहिए एवं जीवों की हिंसा से बचना चाहिए। भगवान महावीर ने कहा हे की अहिंसा परमो: धर्म। हम अपने जीवन में पानी का दुरुपयोग रोककर भी हम हिंसा से बच सकते हैं। हम जानते हैं कि भगवान से बड़ा कोई नहीं है। परंतु जीवन में हम अपने आप से बड़ा किसी को नहीं मानते। हम ही सबसे समझदार हैं, हमारी ही बात सही है- ऐसा हम सोचते हैं। यही अहंकार हमें नर्क गति में ले जाता है। अहंकार के प्रतिफल में बाहुबली जी का 1 वर्ष का निर्जल तप भी व्यर्थ हो गया और केवल्य ज्ञान उन्हें नहीं मिला।
जैसे ही उन्हें बोध हुआ। उन्होंने अपने अहम् को छोड़ा, एक क्षण में वे केवली हो गये। छोटा सा अभिमान भी हमारी आत्मा की शुद्धि के लिए घातक है। हम हर चीज का अहंकार करते हैं- मेरा परिवार, मेरा पैसा, मेरा बच्चा, मेरा घर, मेरा रूप। जब हम सब में अपनत्व नहीं रखेंगे और अपने आप को श्रेष्ठ मानना बंद करेंगे तो हमारा अहंकार कम होगा। अपना कोई नहीं है यहां तक की ये शरीर भी नहीं हमारा नहीं हैं।
केवल अपनी आत्मा है जो अपनी है, जब अपना कोई नहीं है तो फिर अहंकार किस बात का। अहंकार कम करने के लिए एक आदत और अपनानी चाहिए, गलती स्वीकार करने की आदत। अहंकार की भावना के कारन ही व्यक्ति स्वयं की गलती स्वीकार नहीं करता है। आज के प्रवचन में छोटेलाल चोरडिया, अमर चंद बेंगाणी, विकास सुराणा, प्रकाश चंद नाहटा आदि कई श्रावक और श्राविकाएं उपस्थित थे।
एबीएन सोशल डेस्क। एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट मे बैठा। एक राम का सकल पसारा, एक राम इन सबसे न्यारा ॥
कोई भी यह तर्क दे सकता है कि त्रेता युग की तुलना में किसी भी समय एक महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व ने हमारी सभ्यता और संस्कृति की रूपरेखा को आकार देने में अधिक शक्तिशाली और निर्णायक भूमिका नहीं निभाई, एक ऐसा युग जिसने भगवान राम में एक महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व का शानदार और भाग्यशाली उद्भव देखा।
जिन्होंने एक नए दिव्य युग की स्थापना की, जिसने विभिन्न युगों के दौरान विभिन्न कारणों से अपनी चमक, जीवंतता और शक्ति खो दी। वह एक आदर्श राजा और एक आदर्श गृहस्थ थे जो मानवता की उच्चतम संस्कृति की रक्षा और प्रचार के प्रति समर्पित थे और इस प्रकार लोगों के जीवन को प्रबुद्ध करते थे और सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध समाज के उद्भव का मार्ग प्रशस्त करते थे, जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं जो हमारे सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग हैं।
अब समय आ गया है जब हमें इस महान विरासत के मशाल वाहक के रूप में धार्मिकता, आशा, दृढ़ता और एकता के युग को पुनर्जीवित करने का संकल्प लेना चाहिए। राम मंदिर का निर्माण और राष्ट्र को समर्पित करने की वर्तमान सरकार की प्रतिबद्धता देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपरा की सुरक्षा और संरक्षण के प्रति उसके मजबूत समर दर्शाती है।
हां, भव्य मंदिर का सफल और शांतिपूर्ण निर्माण वास्तव में उस राष्ट्र के लिए उत्सव का प्रतीक है, जिसने दबाव और सामाजिक संकट देखा होगा, लेकिन इनमें से कोई भी इतना शक्तिशाली साबित नहीं हुआ कि हमारी पहचान खतरे में पड़ जाए। राम मंदिर परियोजना वास्तव में हमारी आबादी के बीच विश्वास की एक सर्वोत्तम भावना पैदा करेगी और हमारे देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आत्मसात की प्रक्रिया को मजबूत करेगी। यह भगवान राम की अजेयता और अप्रतिरोध्यता को प्रमाणित करता है।
इस तरह की भावना को फारूक अब्दुल्ला के हालिया बयान में प्रतिध्वनित किया गया है कि भगवान राम सभी के हैं, न कि केवल हिंदुओं के। श्रीराम जन्म भूमि आंदोलन का इतिहास लगभग आठ सौ वर्ष पुराना है। यानी बाबर से भी 300 वर्ष पूर्व से अनेक राजा और रानियों ने सेना सहित तथा भक्तों ने व्यक्तिगत अथवा सामूहिक तौर पर अपने प्राण न्योछावर किए और इनकी कुल संख्या लाखों में है।
अस्सी के दशक के अंतिम वर्षों में गहन चिंतन और मनन के बाद हिंदू संगठनों ने पहले विश्व हिंदू परिषद उपरांत भाजपा और विविध सहयोगियों के साथ इस धार्मिक आंदोलन को अपनाने का जोखिम पूर्ण निर्णय लिया था। पालमपुर में आयोजित बैठक में इसे विधिवत घोषित भी कर दिया गया। इस सांस्कृतिक आंदोलन का मैंने नजदीक से अध्ययन और अवलोकन करने का मन बनाया। इस विषय में शेष राजनीतिक और सामाजिक ढांचे के विरोध का आलम ऐतिहासिक और भीषण था।
इसी क्रम में मुलायम सिंह यादव के समय 1990 में कारसेवकों पर लाठीचार्ज और गोलीबारी ने हिन्दू समाज को अत्यंत आक्रोशित किया जिस के कारण 1992 का दृश्य बना और संतसमाज, न्यायालय और जनसाधारण के सक्रिय योगदान से भाजपा को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचा।
देश-विदेश से लाखों-लाख नर नारी, युवा, बृद्ध और बाल एक ही मंजिल तक पहुंचे। चेहरों पर निडरता, उत्साह और जनून स्पष्ट झलक रहे थे। एक प्रत्यक्षदर्शी गया से गये थे। कविन्द्र सिंह नाम के इस व्यक्ति ने बताया कि पचास हजार से अधिक लोग बैरिकेड्स के आसपास नारे लगा रहे थे।
झुंड के झुंड पताका और ध्वजदंड के साथ बढ़ रहे थे। स्थिति बहुत तनावपूर्ण थी। डंडे और लाठियों के साथ नेताओं के भाषणों को दरकिनार कर लोग वानर सेना के समान आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे। अचानक सामने ढांचे के गुंबद की ओर रस्सी फेंक कर उसे स्तंभ से बांध कर सेतु बना कर दो नवयुवक उल्टा लटक कर गुंबद के शिखर पर पहुंच गए और भगवा फहरा दिया।
उन्होंने पीठ पर कुछ औजार बांधे हुए थे। मंच से घोषित किया गया कि कोई हिन्दू है तो नीचे उतर आए। स्मरण है कि साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती और आडवाणी जी भी मंच पर थे। इस हालत को देखते ही बैरिकेड्स के समीप का जनसमूह सैलाब की तरह आगे निकल कर ढांचे को घेरकर खड़ा हो गया।
बैरिकेड्स कहां गए, सुरक्षा कहां गई कोई पता नहीं चला। विस्फारित आंखों से वे ऐतिहासिक पल देखे। आस्था का विकराल आक्रोश था। फिर क्या हुआ सभी को मालूम है। तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह ने केन्द्रीय बलों को रेल या केन्द्रीय परिसरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी थी।
हिमाचल प्रदेश सहित चार भाजपा सरकारें गिरा दी गई थीं। मंदिर का विषय भाजपा की सफलता का एक पक्ष अवश्य है लेकिन इन सरकारों का उस समय दोबारा न आना, इस कार्य में उस समय लाखों दक्षिण भारतीय महिलाओं और पुरुषों का योगदान तथा 2014 में बहुमत जो मोदी नीत भाजपा को निरंतर सशक्त बना रहे हैं और यह व्यापक राष्ट्र हित में आवश्यक भी है।
1992 और 2025 की परिस्थितियां बहुत अर्थ में भिन्न हैं। राम भारत के जन-जन में हैं मन-मन में विराजते हैं। बिहार के चुनाव में मन के राम की व्यापक जीत और विगत 30 साल से राम देश के राजनीति का आधार भी है। धर्म नीति राम राज्य की परिकल्पना से हर कोई प्रभावित है। यह राम ही हैं जो भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं।
आज राम मंदिर का ध्वजा कोई सामान्य ध्वजा नहीं है। यह सत्य सनातन के उदभव विकास और शीर्ष पर जाने की एक संपूर्ण कहानी है। हजारों साल की गुलामी मुगलों का शासन और आजाद भारत की छद्म धर्म निरपेक्षता के बीच निखरे हमारे सत्य सनातन के राम अपना सम्मान पा रहें हैं।
लोहिया ने कहा था कि जबतक देश में राम,कृष्ण और शिव रहेंगे भारत के भाग्य की चिंता करने की जरुरत नहीं होगी। श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अनुसार दाएं कोण वाले तिकोने झंडे की ऊंचाई 10 फुट और लंबाई 20 फुट है। इस पर चमकते सूरज की तस्वीर है, जो भगवान श्री राम की चमक और वीरता का प्रतीक है। इस पर ॐ लिखा है और साथ ही कोविदारा पेड़ की तस्वीर भी है।
पवित्र भगवा ध्वज राम राज्य के आदर्शों को दिखाते हुए, गरिमा, एकता और सांस्कृतिक निरंतरता का संदेश देगा। आज का दिन विराट दिन है जब धर्म ध्वजा फहराने विश्व के सबसे बड़ें लोकतंत्र का प्रधानमंत्री, राजा राम के मंदिर में जाकर मानो कह रहा है- सब देव चले, महादेव चले, लै- लै फूलन की हार रे,चले आवो राघव सांवरिया।
टीम एबीएन, रांची। दिगंबर जैन संत आचार्य 108 सूरत्न सागर जी महाराज के प्रभावक शिष्य परमपूज्य 108 श्री सुतिर्थ सागर जी महाराज के प्रवचन का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि व्यक्ति उम्र से नहीं गुणों से महान बनता है। पारसनाथ से खंडगिरी उदयगिरी विहार के क्रम में परमपूज्य 108 श्री सुतीर्थ सागर जी महाराज अपर बाजार रांची में विराजमान हैं।
प्रात: 8.15 बजे मुनिश्री का प्रवचन प्रारंभ हुआ। आज के प्रवचन में परम पूज्य गुरुवर ने कहा कि व्यक्ति उम्र से और कद से बड़ा नहीं होता बड़ा होता है तो अपने गुणो से। यह गुण ही है जो उसे महान बनाते हैं। लेकिन जैसे ही व्यक्ति महान बनता है उसके अंदर अहंकार आ जाता है और वही अहंकार उसके पतन का कारण बनती है। व्यक्ति ऊंचाइयों को छू सकता है लेकिन ऊंचाई पर बने रहना बहुत कठिन है।
ऊंचाई पर बने रहने के लिए व्यक्ति को नम्र होना बहुत जरूरी है। नम्रता इंसान को जमीन से जोड़े रखती है और यही लंबे समय तक उसकी सफलता का कारण बनती है। संस्कार बचपन में ही घर से मिलने शुरू हो जाने चाहिए और घर में मन को यह ध्यान रखना चाहिए कि शुरू से ही बच्चों के अंदर ऐसे संस्कार कूट-कूट कर भर की यह उसके सफल होने का माध्यम बन सकेकिसी व्यक्ति की महानता उसके जीवनकाल की लंबाई से नहीं, बल्कि उसके गुणों, कर्मों और चरित्र से निर्धारित होती है।
व्यक्ति का महत्व उसके भीतर मौजूद दया, ईमानदारी, ज्ञान, त्याग और संयम जैसे गुणों से बढ़ता है। अच्छे कार्य और दूसरों के प्रति सकारात्मक व्यवहार ही व्यक्ति को समाज में सम्मान और महानता दिलाते हैं। लंबी उम्र पाना महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन यदि जीवन में अच्छे गुण और कर्म नहीं हैं, तो वह महानता नहीं ला सकता। इसके विपरीत, एक कम उम्र का व्यक्ति भी अपने असाधारण गुणों और कार्यों से महान बन सकता है।
जैन धर्म में इस सिद्धांत को बहुत महत्व दिया जाता है, जहां व्यक्ति की आत्मा की शुद्धता और कर्मों की पवित्रता को उम्र से कहीं अधिक श्रेष्ठ माना जाता है। पूर्व अध्यक्ष पूरणमल सेठी, वर्तमान कार्यकरिणी के सदस्यों एवं बाहर से आए अतिथिगण के अलावा अध्यक्ष प्रदीप बाकलीवाल, मंत्री जीतेन्द्र छाबड़ा, माणकचन्द काला, नरेन्द्र पांड्या, प्रमोद झांझरी, कैलाशचन्द बड़जात्या, चेतन पाटनी, टिकमचन्द छाबड़ा, सुबोध जी बड़जात्या, मनोज जी काला, सौरभ विनायक्या, राजेश छाबड़ा,और समाज के कई लोग धर्म सभा में उपस्थित थे। यह जानकारी मीडिया प्रभारी राकेश काशलीवाल ने दी।
एबीएन सोशल डेस्क। आज के प्रवचन में परम पूज्य आचार्य भगवन 1008 श्री रामलाल जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती शासन दीपिका समिया श्री जी म.सा. ने इस बात पर जोर दिया की मनुष्य अपनी जीवन रूपी पूंजी को सही इस्तेमाल कर के अपनी लोक गति को सुधार सकता है। प्रत्येक आत्मा चार गतियों में विचरण करती रहती है - मनुष्य, तिर्यंच, नर्क और देव गति।
आत्मा का उद्देश्य होता है सिद्ध गति को प्राप्त करना। हमें अपनी दैनिक क्रिया कलाप में यथोचित संवेदना लानी चाहिए। जीवन में छोटे छोटे परिवर्तन कर के आत्मा की शुद्धि हो सकती है।आत्मा सभी एक जैसी होती है चाहे वो हमारी आत्मा हो या फिर कोई सिद्ध आत्मा। केवल अंतर हमारे कर्मों का आवरण का मैल है जो हमारी आत्मा पर चढ़ा हुआ है और उसी आवरण के कारण हम ज्ञान को अनदेखा कर रहे हैं। हम सभी को आत्मा की शुद्धि का लक्ष्य रखना चाहिए।
हवा, पानी, अग्नि, पृथ्वी आदि सभी जगह सूक्ष्म जीव होते हैं जिनके प्रति हमें संवेदना रखते हुए अपने दैनिक कार्यों को संपन्न करने चाहिए। मोबाइल, बिजली, पानी और अन्य उपकरण का अनावश्यक प्रयोग रोक कर उस से होने वाली हिंसा को हमें रोकना चाहिए।
क्रोध रूपी कषाय हमारी आदतों में इतना घुल मिल गया है की कई बार हमें पता ही नहीं चलता कि हम क्रोध कर रहे हैं। एक व्यक्ति ने क्रोध किया और अगर सामने वाला शांत स्वाभाव से उत्तर दे तो क्रोधी भी शांत हो जाता है। क्रोध के ऊपर हम अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपनी आत्मा भी मैली कर लेते है।
आज के प्रवचण में रांची, कोलकाता, टाटानगर और दुर्ग से पधारें श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे। श्री साधुमार्गी जैन संघ रांची के अध्यक्ष अशोक सुराणा ने सबका आभार व्यक्त किया। प्रवचन में आज जय जैन, कोमल गेलड़ा, मोहन लाल नाहटा सहित कई श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।
प्रवचन सुबह 9 से 10 एवं ज्ञान चर्चा के लिए दोपहर में 2 से 4 तक का समय रखा गया हैं। रांची प्रवास के दौरान सभी साध्वियां श्री शुभकरण जी बच्छावत के आवास पर विराजी हुई हैं।
एबीएन सोशल डेस्क। श्री कृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट द्वारा संचालित श्री राधा कृष्ण प्रणामी मंदिर पुंदाग में मंगलवार को विवाह पंचमी का पावन पर्व अत्यंत हर्षोल्लास एवं श्रद्धाभाव के साथ मनाया गया। पूरा मंदिर परिसर सुबह से ही भक्ति,उत्साह और आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर दिखाई दे रहा था। विशेष अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी, जिन्होंने भगवान श्रीराम और माता सीता के पावन दांपत्य की स्मृति में आयोजित कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ मंदिर में श्री राधा कृष्ण का अलौकिक श्रृंगार से हुई। पुजारी ने भगवान के विग्रह का भव्य श्रृंगार कर मंदिर परिसर को मनोहर रूप प्रदान किया। रंग-बिरंगे पुष्पों, दीपों और पारंपरिक सजावट से सारा वातावरण दिव्य अनुभूति से भर उठा। श्रद्धालुओं ने बताया कि ऐसा सुंदर और मनमोहक श्रृंगार विरले ही देखने को मिलता है, जो अपने आप में भक्तों को आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति कराता है।
इसके बाद हनुमान चालीसा पाठ और भजन-कीर्तन की ध्वनियों से मंदिर परिसर गूंज उठा। ट्रस्ट के भजन गायकों ने कई पारंपरिक भजनों का संकीर्तन कर माहौल को भक्तिमय बना दिया। मंदिर में उपस्थित सभी श्रद्धालु भक्ति की लय में सराबोर होकर ईश्वर के चरणों में स्वयं को समर्पित करते हुए नजर आये। दोपहर में विशेष पूजा-अर्चना एवं आरती का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में भक्तों ने भाग लिया।
पूजा-विधि का संचालन मंदिर के पुजारी पंडित अरविंद पांडे ने किया। उन्होंने विधिवत पूजा सम्पन्न कर भगवान को नैवेद्य अर्पित किया तथा भोग लगाया। तत्पश्चात भोग-प्रसाद को श्रद्धालुओं के बीच वितरित किया गया। इस अवसर पर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल तथा प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी संजय सर्राफ ने कहा कि विवाह पंचमी का पर्व भगवान श्रीराम और देवी सीता के दिव्य विवाह का स्मरणोत्सव है, जो मर्यादा, प्रेम, त्याग और धर्मपरायणता का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि यह पर्व हमें दांपत्य जीवन में संतुलन, आदर्श और कर्तव्यनिष्ठा के महत्व को समझने का संदेश देता है। विवाह पंचमी जैसा आयोजन मंदिर में धार्मिक एकता और सामुदायिक सद्भाव को और सुदृढ़ करता है।इस प्रकार श्री राधा कृष्ण प्रणामी मंदिर में आयोजित विवाह पंचमी समारोह भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत सफल रहा। भक्तों ने भगवान के दिव्य स्वरूप का दर्शन कर और भजन-कीर्तन में सहभागिता कर गहन आध्यात्मिक शांति और आनंद की अनुभूति प्राप्त की। उक्त जानकारी श्री कृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट के प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी संजय सर्राफ ने दी।
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