झारखंड में अब दिखेगा आदिवासी बनाम कुड़मी

 

आदिवासी बोले- उग्र आंदोलन करेंगे, जवाब में कुड़मी बोले- यह संरक्षण की लड़ाई... 

टीम एबीएन, रांची। झारखंड में आदिवासी और कुड़मी समुदाय के बीच तनातनी अब और तेज हो गयी है। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर बयानबाजी और कानूनी कार्रवाई करके अपनी-अपनी बात मजबूती से रख रहे हैं। फिलहाल विवाद शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। 

मामला दर्ज करवाने से शुरू हुआ नया दौर 

रविवार को आदिवासी समाज की प्रमुख और पूर्व खो-खो खिलाड़ी ज्योत्सना करकेटा ने जेएलकेएम की नेत्री बेबी महतो पर एसटी थाना में मामला दर्ज करवाया। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में यह सिलसिला और बढ़ेगा तथा राज्य के हर जिले के एसटी थाने में इसी तरह के मुकदमे दर्ज कराये जायेंगे। 

जेएलकेएम के प्रदेश उपाध्यक्ष देवेंद्र महतो ने आदिवासी पक्ष की आपत्ति पर सवाल उठाते हुए कहा कि हमारी मांग पूरी तरह संवैधानिक है। हम भारत सरकार से अपने हक की बात कर रहे हैं। इसमें आदिवासियों को क्यों तकलीफ हो रही है, यह समझ से बाहर है। 

उन्होंने दावा किया कि कुर्मी समाज पहले से आदिवासी सूची में शामिल था, लेकिन केंद्र सरकार ने बाद में उन्हें गैर-सरकारी सूची में डाल दिया। हाल ही में कुर्मी समाज ने रेल रोको आंदोलन किया था, जिसे महतो ने पूरी तरह सफल बताया। उनका कहना है कि यह लड़ाई आरक्षण के लिए नहीं, बल्कि संरक्षण के लिए है। 

आदिवासी नेताओं का कड़ा विरोध 

इधर, आदिवासी मूलवासी बचाओ संघ के कार्यकारी अध्यक्ष सूरज टोप्पो ने स्पष्ट चेतावनी दी  कि कुर्मियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की किसी भी कोशिश का जोरदार विरोध होगा। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज अपने आरक्षण और पहचान की रक्षा के लिए सड़क पर उतरेगा। टोप्पो ने घोषणा की कि जल्द ही उग्र आंदोलन की तैयारी पूरी कर ली जाएगी। साथ ही कुर्मी समाज से अपील की कि वे अपनी मांगें संवैधानिक दायरे में ही रखें। 

विवाद का मूल कारण 

कुर्मी समाज का दावा है कि वे पहले से ही आदिवासी सूची में थे, लेकिन उन्हें बाहर कर दिया गया। वे केंद्र सरकार से फिर से एसटी में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। वहीं आदिवासी समाज का मानना है कि यदि कुर्मी समुदाय को एसटी सूची में शामिल किया गया तो उनका आरक्षण और अधिकार प्रभावित होगा। 

राजनीतिक और सामाजिक असर 

झारखंड की राजनीति में यह विवाद अब बड़ा मुद्दा बन चुका है। कुर्मी समाज जहां आंदोलन तेज करने की रणनीति बना रहा है, वहीं आदिवासी समाज भी आरक्षण बचाओ के नारे के साथ सड़क पर उतरने को तैयार है। दोनों पक्षों के बीच यह संघर्ष आने वाले दिनों में राज्य के सामाजिक और राजनीतिक माहौल को और गरमा सकता है।

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