10 दिवसीय योग शिविर में नवरात्र काल में योग का आध्यात्मिक महत्व के बारे में बताया : योगाचार्य महेश

 

एबीएन सोशल डेस्क। गायत्री मंदिर में चल रहे 10 दिवसीय योग शिविर में योगाचार्य महेश पाल ने योग के आध्यात्मिक महत्व के बारे में बताया  जिसमें उन्होंने कहा कि नवरात्र, भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख और पवित्र पर्व है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है। यह समय केवल धार्मिक आस्था और भक्ति का प्रतीक ही नहीं, बल्कि साधना, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर भी प्रदान करता है। 

योग, जो कि शरीर, मन और आत्मा के सामंजस्य का मार्ग है, नवरात्र के दिनों में विशेष महत्व रखता है। नवरात्र के दौरान योग का अभ्यास साधक को न केवल शारीरिक और मानसिक शांति देता है, बल्कि साधना की गहराई को भी बढ़ाता है नवरात्र को साधना, उपवास और आत्मसंयम का पर्व माना जाता है। इस दौरान व्यक्ति बाहरी आकर्षणों और भौतिक इच्छाओं से दूर होकर आत्मचिंतन और आत्मशुद्धि की ओर अग्रसर होता है। 

योग का अभ्यास इस साधना को सशक्त बनाता है क्योंकि योग व्यक्ति को अंतर्मुखी होने और आत्मा से जुड़ने की दिशा में प्रेरित करता है। नवरात्र में उपवास का विशेष महत्व है। उपवास शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालकर उसे शुद्ध करता है। योगासन और प्राणायाम इस प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बना देते हैं। प्राणायाम उपवास के दौरान मन और भावनाओं को नियंत्रित करता है। ध्यान साधक को भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा से जोड़ता है। 

योगासन शरीर को हल्का, सक्रिय और संतुलित बनाए रखते हैं, योग के अनुसार मानव शरीर में सात चक्र होते हैं, जो ऊर्जा के मुख्य केंद्र हैं। नवरात्र में नौ दिनों की साधना धीरे-धीरे साधक की ऊर्जा को ऊपर की ओर ले जाती है। पहले दिन से लेकर नवें दिन तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना चक्रों की शुद्धि और जागरण का प्रतीक मानी जाती है। ध्यान और मंत्र जप से मूलाधार से सहस्रार तक की ऊर्जा सक्रिय होती है, जो साधक को गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। 

नवरात्र में योग का अभ्यास व्यक्ति को नकारात्मक विचारों, तनाव और असंतुलन से दूर करता है। जब साधक प्राणायाम और ध्यान करता है तो उसकी चेतना शुद्ध होती है। यह शुद्ध चेतना माँ दुर्गा की भक्ति और दिव्य शक्ति को आत्मसात करने में सहायक होती है। नवरात्र काल को शक्ति की उपासना का समय माना गया है। योग साधना इस शक्ति को भीतर से जाग्रत करती है। 

विशेष रूप से कुंडलिनी योग से साधक अपनी सुप्त ऊर्जा को जागृत कर सकता है।ध्यान और जप से साधक ईश्वर के साथ आत्मिक संबंध को अनुभव करता है। सात्विक आहार और योग से शरीर-मन दोनों में शुद्धता आती है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति सरल हो जाती है। 

नवरात्र भक्ति का पर्व है और योग साधना का मार्ग। जब भक्ति और योग मिल जाते हैं तो साधक को सर्वोच्च आनंद की प्राप्ति होती है।योग साधना भक्ति को स्थिर करती है, और भक्ति योग साधना को भावनात्मक गहराई प्रदान करती है, नवरात्र में साधारण, सहज और शांति देने वाले आसनों का अभ्यास करना श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि इस समय उपवास और साधना के कारण शरीर हल्का रहता है। 

  1. पद्मासन (Lotus Pose): ध्यान और मंत्र जप के लिए सर्वोत्तम आसन। 
  2. वज्रासन-(Thunderbolt Pose): भोजन या फलाहार के बाद बैठने के लिए उत्तम, पाचन में सहायक। 
  3. सुखासन- (Easy Pose): लंबी साधना और ध्यान हेतु आरामदायक।
  4. भुजंगासन- (CobraPose): ऊर्जा और जागरूकता बढ़ाता है।
  5. त्रिकोणासन - (Triangle Pose): शरीर में संतुलन और लचीलापन लाता है।
  6. शवासन - (Corpse Pose): मानसिक शांति और विश्रांति हेतु अनिवार्य, नवरात्र के दिनों में प्राणायाम से साधक का मन स्थिर और चेतना निर्मल होती है। 
  7. अनुलोम-विलोम: नाड़ी शुद्धि और मानसिक संतुलन के लिए। भ्राम
  8. प्राणायाम: तनाव और चंचलता दूर कर ध्यान में गहराई लाता है। 
  9. कपालभाति: शरीर से विषैले तत्व निकालकर ऊर्जा प्रदान करता है
  10. नाड़ी शोधन प्राणायाम: शरीर और मन दोनों को शुद्ध करता है। 

ऊँ जप के साथ श्वास अभ्यास: आध्यात्मिक कंपन को बढ़ाता है और भक्ति भाव को गहन करता है। प्रतिदिन माँ दुर्गा के मंत्र (जैसे ॐ दुं दुर्गायै नमः) का जप ध्यान मुद्रा में बैठकर करना चाहिए। प्रत्येक दिन माता के नौ रूपों का ध्यान चक्र साधना के साथ जोड़कर करने से साधक को गहरी आध्यात्मिक अनुभूति होती है।

नवरात्र के पावन अवसर पर योगासन, प्राणायाम और ध्यान साधक की साधना को सशक्त और गहन बना देते हैं। उपवास के साथ योग का संयोजन न केवल शरीर को शुद्ध करता है बल्कि साधक को देवी शक्ति के साथ आत्मिक रूप से जोड़ता है। यही कारण है कि नवरात्र काल में योग का अभ्यास विशेष रूप से आध्यात्मिक महत्व रखता है।

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