कभी 21 दिनों का होता था दिन, जानें कब...

 

60 करोड़ साल पहले 24 नहीं 21 घंटे का होता था एक दिन, जानिये कैसे आया बदलाव 

एबीएन नॉलेज डेस्क। एक दिन 24 घंटे का होता है। लेकिन साइंस की एक ऐसी स्टडी सामने आयी है जो बताती है कि 60 करोड़ साल पहले एक दिन 21 घंटे का होता था। पृथ्वी का रोटेशन धीमा हो रहा है जिससे दिन की लंबाई औसतन प्रति शताब्दी लगभग 1.8 मिलीसेकंड बढ़ जाती है। इसी वजह से 60 करोड़ साल पहले 21 घंटे का एक दिन होता था। 

साइंस में हर दिन नए खुलासे होते हैं। हाल ही में एक ऐसा खुलासा हुआ है जिसको जानकर आप भी चौंक जायेंगे। पूरे दिन में कितने घंटे होते हैं। इस सवाल का आप बड़ी ही आसानी से जवाब दे सकते हैं। 24 घंटे, लेकिन अगर मैं यह कहूं कि 60 करोड़ साल पहले एक दिन 24 नहीं बल्कि 21 घंटे का होता था। 

मेरी बात सुनकर आप शायद विश्वास न करें। लेकिन, चलिए आपको साइंस की ऐसी स्टडी बताते हैं जिससे मेरी बात को समझनने और इस पर विश्वास करने में आपको आसानी होगी। एक दिन में 24 घंटे होते हैं यानी 86,400 सेकंड। 

60 करोड़ साल पहले 21 घंटे का होता था दिन 

एक दिन के 24 घंटे यह वो समय होता है, जितने समय में पृथ्वी को एक बार घूमने में समय लगता है। हालांकि, पृथ्वी बिल्कुल समान रूप से नहीं घूमती है। आमतौर पर, धीरे-धीरे पृथ्वी का रोटेशन धीमा हो रहा है जिससे दिन की लंबाई औसतन प्रति शताब्दी लगभग 1.8 मिलीसेकंड बढ़ जाती है। इसका मतलब यह है कि 60 करोड़ साल पहले एक दिन सिर्फ 21 घंटे का होता था। 

कैसे आया बदलाव 

दिन की लंबाई में जो समय के साथ यह बदलाव आया है यह कई चीजों की वजह से आया है। जिसमें चांद और सूरज के ज्वारीय प्रभाव, पृथ्वी के अंदर कोर-मेंटल युग्मन और ग्रह पर मास का वितरण शामिल है। इसी के साथ भूकंप यानी भूकंप की गतिविधि, ग्लेशियर, मौसम, महासागर और पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र भी दिन की लंबाई पर असर डालता है। 

2020 में सामने आयी स्टडी

साल 2020 में वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाली खोज की थी। उन्होंने पाया था कि पृथ्वी धीमी होने के बजाय तेजी से घूमने लगी है। यह अब पिछले 50 वर्षों में किसी भी समय की तुलना में अधिक तेजी से घूम रही है। जहां एक समय में सामने आता था कि पृथ्वी का रोटेशन धीमा हो रहा है। वहीं, स्टडी में अब सामने आ रहा है कि यह बढ़ रहा है।

जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 

अभी तक, वैज्ञानिक पूरी तरह से निश्चित नहीं हैं कि पृथ्वी की रोटेशन दर में जो यह तेजी आ रही है इसके पीछे की वजह क्या है। लेकिन कुछ ने सुझाव दिया है कि यह 20 वीं शताब्दी के दौरान ग्लेशियरों के पिघलने या नॉर्थ हेमिस्फीयर के ग्लेशियर में बड़ी मात्रा में पानी के इकट्ठा होने के कारण हो सकता है। 

हालांकि, विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह पृथ्वी की रोटेशन में जो यह तेजी आई है या अस्थायी है, यह कुछ ही समय के लिए है। भविष्य में एक बार फिर पृथ्वी धीमी होने लगेगी। लेकिन, अब सवाल उठता है कि क्या अभी के लिए, क्या हमें चिंतित होना चाहिए? 

हालांकि, इसका हमारे रोजाना के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन जीपीएस उपग्रह, स्मार्टफोन, कंप्यूटर और संचार नेटवर्क जैसी टेक्नॉलोजी पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, जो सभी बेहद सटीक समय सिस्टम पर निर्भर हैं। लेकिन ऐसी समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है। तो नहीं, हमें चिंतित नहीं होना चाहिए झ्र जब तक कि दिन का छोटा होना मानव गतिविधि के कारण न हो।

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