जानें कैसे वेदवती के श्राप ने रावण का किया समूल सत्यानाश

 

एबीएन सोशल डेस्क। एक बार जब रावण हिमालय के जंगलों में विचरण कर रहा था, तभी उसकी नज़र एक तपस्विनी पर पड़ी जो युवावस्था के पूर्ण सौंदर्य में थी। उस युवती का नाम वेदवती था। उसकी अनुपम सुंदरता और मोहकता को देखकर रावण मोहित हो गया और तीव्र वासना से भर उठा। वह उसके पास गया और बोला- तपस्या क्यों कर रही हो? ऐसी तपस्विनी वृत्ति एक सुंदर युवती को शोभा नहीं देती। तुम्हारा सौंदर्य तो ऐसा है कि कोई भी पुरुष उस पर मोहित हो जाए। तुम किसकी पुत्री हो और किस देवता की आराधना कर रही हो?

रावण के इस प्रश्न पर वेदवती ने उत्तर दिया,
मैं बृहस्पति के पुत्र कुशध्वज की कन्या हूँ। जब मैं विवाह योग्य हुई, तब अनेक देवता, गंधर्व, यक्ष और यहाँ तक कि राक्षस भी मेरे हाथ माँगने आए। लेकिन मेरे पिता ने किसी को भी मुझे सौंपा नहीं, क्योंकि उन्होंने केवल श्रीविष्णु को ही मेरे लिए वर रूप में स्वीकार किया था। एक राक्षस ने उन्हें मार डाला, और अब उनके उस संकल्प को पूरा करने हेतु मैं तप कर रही हूँ, जिससे मेरा विवाह केवल श्रीविष्णु से हो सके।

यह सुनकर रावण की वासना और अधिक बढ़ गई। उसने वेदवती को मीठे और लुभावने शब्दों से प्रलोभन देने की कोशिश की कि वह उससे विवाह कर ले। किंतु वेदवती ने उसके सारे प्रस्ताव दृढ़तापूर्वक ठुकरा दिए। इस अस्वीकृति से रावण क्रोधित हो गया। उसने बलपूर्वक वेदवती के बाल खींचे और उसे अपमानित करने लगा।

रावण की इस धृष्टता से वेदवती क्रुद्ध हो उठी। उसने अपने बाल काट डाले और स्वयं को उससे मुक्त कर लिया। अपमान और पीड़ा से जलती हुई वेदवती ने उसी क्षण रावण के सामने अग्नि में प्रवेश कर लिया — लेकिन उससे पहले उसने उसे श्राप दिया: तूने मेरा अपमान किया है, इसलिए मैं फिर से जन्म लूंगी... और तेरी विनाशलीला का कारण बनूंगी। इतना कहकर वेदवती अग्नि में विलीन हो गई।

बाद में जब रावण की श्रीराम से पहली मुठभेड़ में पराजय हुई, तो उसे वेदवती की याद आई। वह व्याकुल होकर बोला: ऐसा प्रतीत होता है कि वेदवती, जिसने मेरे द्वारा किए गए अपमान पर मुझे श्राप दिया था — वही अब सीता के रूप में जन्म लेकर मेरी विनाश का कारण बनी है।

(स्रोत: वाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड – सर्ग 17; युद्ध कांड – सर्ग 60)

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