एबीएन एडिटोरियल डेस्क। भूमि और श्रम; भारत के विकास के आधार-स्तंभ हैं— भूमि अवसंरचना और औद्योगिक विकास को गति देती है, जबकि श्रम उत्पादकता और समावेश को बढ़ावा देता है। इस संदर्भ में, भारत की नई श्रम संहिताएं एक परिवर्तनकारी कदम को रेखांकित करती हैं, 29 कानूनों को एक आधुनिक, एकीकृत संरचना में समेकित करती हैं तथा श्रम परिदृश्य में स्पष्टता, एकरूपता और समानता सुनिश्चित करती है।
श्रमिकों के लिए, ये संहिताएं मजबूत सामाजिक सुरक्षा, सुरक्षित कार्यस्थल और औपचारिक लाभों तक व्यापक पहुंच की सुविधा प्रदान करती हैं, जबकि व्यवसायों को सरलीकृत अनुपालन, कार्यबल प्रबंधन में लचीलेपन और सभी क्षेत्रों में समान अवसर का लाभ मिलता है। हालांकि अंतिम प्रभाव कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा, लेकिन ये संहिताएं भारत के श्रम बाजार को 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं।
जयपुर में वितरण सेवाओं से लेकर साणंद में तकनीकी भूमिकाओं और गुवाहाटी में निर्माण कार्य तक— विभिन्न क्षेत्रों में भारत के कार्यबल की आकांक्षा एक-जैसी है: सुरक्षित कार्य परिस्थितियों तक पहुंच, उचित पारिश्रमिक और दूसरी जगह ले जाने योग्य एवं विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा। श्रमिक चाहे कारखानों में कार्यरत हों या खेतों में, या प्लेटफॉर्म-आधारित सेवाओं से जुड़े हों, वे तीन प्रमुख आश्वासन चाहते हैं: आय स्थिरता, पूवार्नुमानित सामाजिक सुरक्षा और रोजगार में सम्मान।
भारत की चार श्रम संहिताएं इस आकांक्षा को जीवंत वास्तविकता में बदलने के उद्देश्य से तैयार की गयी हैं, ताकि समता और सुरक्षा के सिद्धांत का कार्य जगत में अंतर्निहित होना सुनिश्चित हो सके। सुधारों के केंद्र में है - सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार। लाखों असंगठित, गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिक, जो भारत के कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, नयी व्यवस्था के तहत औपचारिक मान्यता प्राप्त करेंगे और कई सुविधाओं के पात्र बन जायेंगे।
भविष्य निधि, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व लाभ के प्रावधान अब औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत श्रेणियों तक इनका विस्तार हो जायेगा। यह बदलाव, न केवल कमजोर श्रमिकों के लिए सुरक्षा सुविधा को मजबूत करता है, बल्कि उद्यमों को रोजगार को औपचारिक बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक सुरक्षा के समग्र आधार का विस्तार होता है।
सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 औपचारिक रूप से गिग, प्लेटफॉर्म और असंगठित श्रमिकों को मान्यता देती है तथा केंद्र और राज्यों को उनके लिए समर्पित सामाजिक-सुरक्षा कोष स्थापित करने की सुविधा देती है। एग्रीगेटर्स को टर्नओवर का 1-2 प्रतिशत, भुगतान का अधिकतम 5 प्रतिशत, योगदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है, जो गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लाभों के वित्तपोषण का एक व्यावहारिक तरीका है।
आधार-आधारित पंजीकरण पहले ही अधिसूचित किया जा चुका है और ई-श्रम पोर्टल में 31 करोड़ से अधिक श्रमिक नामांकित हैं। प्रत्येक श्रमिक को एक सार्वभौमिक खाता संख्या (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर, यूएएन) दी गयी है, जिसके जरिये स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व सहायता, या वृद्धावस्था पेंशन जैसे लाभों को नये कार्य-स्थल में स्थानांतरित किया जा सकता है, चाहे वे कहीं भी काम करते हों। ई-श्रम रजिस्ट्री, वास्तव में, अनौपचारिक श्रमिकों के संदर्भ में भारत का पहला राष्ट्रीय डेटाबेस है— जो समावेशी विकास और आपदा सहनीयता की दिशा में एक आवश्यक कदम है।
व्यवसाय सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियां संहिता भी उतनी ही परिवर्तनकारी है, जो सुरक्षा मानदंडों को एकीकृत करती है और विशेष रूप से, महिलाओं को सहमति और सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देती है। यह प्रगतिशील उपाय महिलाओं के लिए अवसरों का विस्तार करता है, जबकि सुरक्षा को अनिवार्य बनाये रखता है।
ओएसएच संहिता लाइसेंस और निरीक्षण प्रणालियों को भी युक्तिसंगत बनाती है, जो दंड के बजाय रोकथाम की संस्कृति को बढ़ावा देने के क्रम में जोखिम-आधारित, प्रौद्योगिकी-सक्षम अनुपालन की ओर अग्रसर है। इसी तरह, वेतन संहिता सभी क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन और समय पर भुगतान व्यवस्था को सार्वभौमिक बनाती है, चाहे उनका क्षेत्र या कौशल स्तर कुछ भी हो।
औद्योगिक संबंध संहिता, विवाद समाधान तंत्र को मजबूत करने और सामाजिक संवाद को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। विवाद बढ़ने से पहले बातचीत, सुलह और मध्यस्थता को प्रोत्साहित करके, यह संहिता एक अधिक स्थिर औद्योगिक संबंध वातावरण का निर्माण करती है। इसके अतिरिक्त, ट्रेड यूनियन मान्यता और बड़े उद्यमों के लिए स्थायी आदेशों से संबंधित सरलीकृत नियम; नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों में पारदर्शिता और पूवार्नुमान में सुधार को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किये गये हैं।
उद्यमों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए, श्रम संहिताओं का अर्थ है सरल अनुपालन: मानकीकृत परिभाषाएं, कम रजिस्टर, डिजिटल रूप से दाखिल करना और बहुत कम अस्पष्टता। भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह वित्त वर्ष 2021-22 में 83.6 बिलियन डॉलर रहा था और वित्त वर्ष 2024-25 में यह 81 बिलियन डॉलर के साथ मजबूत स्थिति में है। इस अवधि में, भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण सुधार लागू किए, जिनमें श्रम सुधारों का अधिनियमन भी शामिल है। वित्त वर्ष 2021-22 में पूंजीगत व्यय के लिए लगभग 13 लाख करोड़ रुपये से अधिक का उच्चतम आवंटन हुआ।
इसके अलावा, संस्थागत नीति, डिजिटल सुधारों, देश में व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने और भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य स्थल बनाने के माध्यम से अनुपालन बोझ को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किये गये। इसी अवधि में विनिर्माण क्षेत्र में सुधार तथा सेमीकंडक्टर उद्योग, कोयला क्षेत्र, ऊर्जा और खनिज क्षेत्र को मजबूत करने से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बाजार में देश की स्थिति को और मजबूत करने में योगदान मिला।
फिर भी, कानून पारित करना केवल आधी यात्रा है। श्रम समवर्ती सूची का विषय है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों को कार्यान्वयन के लिए नियम बनाने और अधिसूचित करने होंगे। हालांकि अधिकांश राज्यों ने चारों संहिताओं के अंतर्गत नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है, लेकिन अंतिम अधिसूचना जारी करने की गति असमान बनी हुई है। एक राष्ट्र, एक श्रम कानून व्यवस्था के विजन को साकार करने के लिए, यह आवश्यक है कि केंद्र और सभी राज्य कार्यान्वयन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ें।
एमएसएमई को संहिताओं को समझने के लिए हेल्प-डेस्क और सरलीकृत मार्गदर्शिकाओं की आवश्यकता है; श्रमिकों को बहुभाषी हेल्पलाइन और जमीनी सहायता की जरूरत होती है। सरकार, उद्योग निकायों और यूनियनों के संयुक्त प्रयास यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कागज पर लिखे अधिकार, लाभ-प्राप्ति में परिवर्तित होंगे। मूलत:, यह सुधार इस विश्वास पर आधारित है कि काम सुरक्षित होगा और उचित भुगतान किया जाएगा; सामाजिक सुरक्षा श्रमिक के साथ बनी रहेगी और अनुपालन इतना सरल होगा कि सभी इसमें भाग ले सकेंगे।
इस संरचना के निर्माण के लिए सरकार प्रशंसा की पात्र है। यदि हम इन्हें गति, पारदर्शिता और सहयोग के साथ कार्यान्वयन करते हैं, तो ये संहिताएं भारत के अगले विकास अध्याय का आधार बन सकती हैं - व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्धा, श्रमिकों के लिए सम्मानजनक कार्य और निवेशकों के लिए पूर्वानुमानित व्यावसायिक वातावरण। यही विकसित भारत का सार है - समावेश के साथ विकास और समृद्धि, जो प्रत्येक श्रमिक तक पहुंचती हो। (लेखक भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)
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