मैथिली ठाकुर और मिथिला...

 

प्रभात गोपाल झा

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। मैथिली ठाकुर के महज चुनाव लड़ने की चर्चा है और प्याली में तूफान सा खड़ा हो गया है। मैथिली चुनाव लड़ें या नहीं, यह उनका व्यक्तिगत अधिकार है। हर आदमी को यह हक है कि वह किस क्षेत्र में कहां, कैसे काम करे। सिर्फ इस मुद्दे पर किसी का विरोध अनुचित है।

अगर मैथिली मिथिला में आकर चुनाव लड़ने की इच्छा रखती हैं, तो आलोचना नहीं हो। मैथिली ठाकुर ने लाइव टीवी शो और अन्य कार्यक्रमों की बदौलत अपार सफलता हासिल की। यहां मिथिला में उनके कार्यक्रम कम होना या मिथिला से दूरी बरतना बहस का विषय नहीं हो सकता। वैसे भी किसी का भी चुनाव लड़ना उसका व्यक्तिगत अधिकार है। अगर पार्टी नीति तय करती है तो यह उसके दायरे की बात है, किसी व्यक्ति विशेष की नहीं। उस व्यक्ति पर सवाल खड़ा नहीं कर सकते हैं।

असल में आज का मिथिला समाज खुद विरोधाभास से जूझ रहा है। मिथिला के गांव वीरान पड़े हैं। मुद्दे कम हैं। यह भी सच्चाई है कि मिथिला के लिए दिल्ली पटना से ज्यादा दिल के करीब हो गया है। समाज ही व्यक्तिवादी हो चला है। जिस समाज में विचार, आहार और व्यवहार की बात होती थी, वहां सिर्फ एक व्यक्ति के चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने की बात पर गजब की उथल-पुथल है।

हाल के दिनों में किसी के व्यक्तिगत अधिकार पर इस तरह की ट्रोलिंग किसी और समाज में नहीं दिखती। यहां वक्त के हिसाब से समाज में बदलाव की गुंजाइश कम है। मैथिली की पहल पर उनके कम उम्र के होने की भी लोग दुहाई दे रहे हैं। लेकिन ये ऐसे लोग हैं, जो नीति तय करते हैं और विचार के धनी माने जाते हैं। यहां अब उनके विचारों से थोड़ी असहजता होती है। मिथिला को लेकर चिंता भी।

बुनियादी सवाल है कि अगर कोई अपना भाग्य खुद लिखने की कोशिश कर रहा है तो आप ट्रोलर की भूमिका क्यों निभा रहे हैं। किसी के व्यक्तिगत निर्णय पर आप और हम क्यों फैसला दें। हां, वोट देते समय चयन का मुद्दा आपका होगा।  

मैथिली की पहल का स्वागत करना चाहिए। मैथिली ठाकुर या किसी बड़ी शख्सियत द्वारा चुनाव लड़ने की पहल का स्वागत हो। क्योंकि वक्त अगर उन्हें सलामी देगा तो आपको भी झुकना होगा। नहीं तो कई जीनियस पहले भी गुमनामी के अंधेरे में खो चुके हैं। ऐसे में किसी को ट्रोल कर आप खुद ही अपनी हताशा दिखा रहे हैं। वैसे भी बुलंदी चंद दिनों की मेहमान होती है।

बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है
~मुनव्वर राणा 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

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