एबीएन डेस्क। देश में बढ़ते कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए इन दिनों लोगों ने करंसी नोटों से दूरी बना ली है। इसकी जगह भुगतान के लिए लोग डिजिटल माध्यमों का उपयोग पहले के मुकाबले ज्यादा करते हुए नजर आ रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, मार्केट में करंसी नोटों की उपलब्धता की दर पिछले साल 13 अगस्त के मुकाबले कम होकर 10 फीसदी रह गई है। जबकि पिछले वर्ष की इस अवधि में वित्तीय प्रणाली में करंसी नोटो के प्रसार की दर 22.4 फीसदी थी। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, आरबीआई की रिपोर्ट में कोविड-19 की दूसरी लहर बाद से पैदा हुए हालात के बाद बैंकिंग प्रणाली में जमा रकम बढ़ रही है। दूसरी लहर के दौरान बैंकों में रकम जमा होने की दर शून्य से भी नीचे आ गई थी और वित्तीय तंत्र में करंसी का प्रसार बढ़ गया था। बैंकों में जमा रकम बढ़ने से पता चल रहा है कि पहले की तुलना में अब आर्थिक अनिश्चितता कम हो गई है और लोगों का मनोबल पहले से बढ़ गया है। हालांकि लोन देने की रफ्तार सुस्त रही तो बैंकों के लिए जमा रकम का अंबार संभालना मुश्किल हो सकता है। बाजार में मौजूद ज्यादातर करंसी औपचारिक माध्यमों से आ रही है। लोग अब डिजिटल माध्यम से भुगतान को अधिक तरजीह दे रहे हैं इसलिए वे बैंकों से नकदी निकालने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। पहले के मुकाबले अब नकदी पर लोगों की निर्भरता धीरे-धीरे कम हो रही है, खासकर खुदरा उपभोक्ता और बड़ी संख्या में लोग डिजिटल माध्यम के जरिए अधिक भुगतान कर रहे हैं। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल माध्यम से भुगतान को नोटबंदी के मुकाबले कोरोना महामारी से ज्यादा बढ़ावा मिला है। डिजिटल भुगतान अब थमने वाला नहीं है और इसकी लोकप्रियता बढ़ती ही जाएगी। कोविड महामारी के कारण डिजिटल भुगतान अपनाने की प्रक्रिया तेज हो गई है। सामान्य परिस्थितियों में डिजिटल भुगतान को जोर पकड़ने में कम से कम 5 से 10 वर्षों का और समय लग जाता। महामारी की वजह से यह एक वर्ष में ही संभव हो पाया है।
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