धनबाद गैस रिसाव : ड्रोन सर्वे में जुटा सीएमपीडीआईएल

 

धनबाद में 9 दिनों से गैस रिसाव जारी, सीएमपीडीआईएल ने शुरू किया ड्रोन सर्वे 

एबीएन न्यूज नेटवर्क, धनबाद/ रांची। कोल इंडिया की सहायक कंपनी केंद्रीय खान नियोजन एवं डिजाइन संस्थान (सीएमपीडीआईएल) के विशेषज्ञों की एक टीम ने शुक्रवार को झारखंड में भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) के कोयला खदान क्षेत्रों में भूमिगत खदानों से गैस उत्सर्जन से प्रभावित इलाकों का ड्रोन सर्वेक्षण शुरू किया। 

इससे पहले राजपूत बस्ती, मस्जिद मोहल्ला और एरिया नंबर पांच से गैस रिसाव की खबरें आयी थीं जो बीसीसीएल के पुटकी-बलिहारी कोयला खदान क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। गैस रिसाव की खबर के बाद अधिकारियों ने लगभग 1,000 स्थानीय लोगों को स्थानांतरित करने का फैसला किया था। 

केंदुआडीह बस्ती में इस महीने की शुरूआत में इन खदानों से कार्बन मोनोक्साइड का रिसाव होने से एक महिला की कथित तौर पर मौत हो गई थी, जबकि 12 लोग बीमार पड़ गये थे। टीम का नेतृत्व कर रहे सीएमपीडीआईएल के अधिकारी भुवनेश कुमार गुप्ता ने कहा कि गैस उत्सर्जन के पीछे की वजहों का पता लगाने, रिसाव के स्रोतों की पहचान करने और उन्हें रोकने के उपाय शुरू करने के लिए बीसीसीएल के निर्देश पर ड्रोन सर्वे किया जा रहा है। 

टीम के सदस्य अशोक कुमार और संदीप हाजरा ने कहा कि प्रभावित स्थलों के 400 मीटर के दायरे में यह ड्रोन सर्वेक्षण कराया जा रहा है। गुप्ता ने कहा, हम डेटा एकत्र कर रहे हैं और इसे रांची स्थित सीएमपीडीआईएल कार्यालय को सौंपेंगे, जहां विशेषज्ञ गैस रिसाव के पीछे के कारणों का विश्लेषण करेंगे और इस रोकने के लिए उपाय तलाशेंगे। 

उन्होंने कहा कि आंकड़ों का विश्लेषण करने में 15 से 20 दिन लगेंगे। सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर प्रभावित क्षेत्रों में मकानों और निवासियों की संख्या की भी पहचान की जाएगी। टीम के सदस्यों ने बताया कि ड्रोन अध्ययन के अलावा प्रभावित क्षेत्रों के तापमान को मापने के लिए थर्मल गन सर्वे भी किया जा रहा है। 

गुप्ता ने कहा, प्रभावित क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 22 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो इस क्षेत्र में सर्दियों के मौसम के लिए सामान्य है। रांची स्थित सीएमपीडीआई कोल इंडिया लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। अधिकारियों ने कहा कि क्षेत्र में पहले किए गए सर्वेक्षणों में गैस उत्सर्जन से पिछले 11 दिनों में प्रभावित मकानों और लोगों की संख्या का आकलन नहीं किया गया था।

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