ज्ञान विज्ञान

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Published / 2025-12-07 21:08:03
नये साल में लगेंगे कितने ग्रहण, यहां जानें...

नये साल 2026 में लगेंगे कुल इतने ग्रहण, भारत में दिखेंगे या नहीं यहां पढ़ें पूरी जानकारी 

एबीएन सेंट्रल डेस्क। साल 2026 में 2 सूर्य और 2 चंद्र ग्रहण समेत कुल चार ग्रहण होंगे। यह जानकारी स्वर्गीय प्रसिद्ध पंडित कल्याण स्वरूप शास्त्री विद्यालंकार के बेटे पंडित शिवकुमार शर्मा ने जैतो में दी। 

  1. उन्होंने बताया कि पहला सूर्य ग्रहण मंगलवार, 17 फरवरी, 2026 को लगेगा। यह ग्रहण अंटार्कटिका, दक्षिणी चिली और अर्जेंटीना और दक्षिण अफ्रीका के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा। यह भारत में दिखाई नहीं देगा। इसलिए सूतक काल भारत में मान्य नहीं होगा। 
  2. दूसरा पूर्ण सूर्य ग्रहण बुधवार, 12 अगस्त, 2026 को लगेगा। यह एक महत्वपूर्ण पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा, जिसका रास्ता ग्रीनलैंड, आइसलैंड, स्पेन और पुर्तगाल से होकर गुजरेगा। यह भी भारत में दिखाई नहीं देगा। 
  3. तीसरा पूर्ण चंद्र ग्रहण मंगलवार, 3 मार्च, 2026 को लगेगा। यह ग्रहण एशिया, आस्ट्रेलिया, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका और यूरोप में दिखाई देगा। यह ग्रहण भारत के कई हिस्सों में दिखाई देगा। इसका सूतक काल वैध होगा। 
  4. चौथा आंशिक चंद्र ग्रहण शुक्रवार, 28 अगस्त, 2026 को लगेगा। यह ग्रहण उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका में दिखाई देगा। यह भारत में कहीं भी दिखाई नहीं देगा। पंडित शिवकुमार शर्मा ने कहा कि शास्त्रों में कहा गया है कि जिस देश में ग्रहण दिखाई नहीं देता, वहां उसका कोई धार्मिक महत्व नहीं होता और न ही उसका कोई प्रभाव होता है।

Published / 2025-10-25 23:02:08
गगनयान मिशन जल्द टेस्ट फ्लाइट के लिए तैयार : इसरो

  • गगनयान मिशन जल्द होगा टेस्ट फ्लाइट के लिए तैयार, ISRO ने दी जानकारी

एबीएन नॉलेज डेस्क। देश की पहली ह्युमन स्पेस फ्लाइट के लिए लगभग 90 प्रतिशत कार्य पूरा हो गया है। गगनयान मिशन का लॉन्च 2027 में किया जाना है। इससे पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को बिना क्रू वाली तीन टेस्ट फ्लाइट को पूरा करना होगा। इसके बाद इस फ्लाइट को ह्युमन्स के लिए तैयार घोषित किया जा सकेगा। 

गगनयान मिशन की सफलता के साथ भारत ऐसे चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा जिन्होंने ह्युमन स्पेस फ्लाइट को खुद डिवेलप किया है। ISRO के चेयरमैन, V Narayanan ने बताया, Gangyaan मिशन की प्रगति अच्छी चल रही है। मैं यह कह सकता हूं कि इसके डिवेलपमेंट का लगभग 90 प्रतिशत कार्य पूरा हो गया है। नारायणन ने कहा कि भारतीय एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में ले जाने का यह मिशन 2027 में लॉन्च किया जाएगा। 

इससे पहले ISRO बिना क्रू वाली तीन टेस्ट फ्लाइट को भेजेगा। इनमें से पहला बिना क्रू वाला मिशन ह्युमनॉइड Vyomitra के साथ इस वर्ष के अंत तक उड़ान भर सकता है। गगनयान मिशन की तैयारी को लेकर ISRO काफी सतर्कता बरत रहा है। इस मिशन के लॉन्च के साथ अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स को भेजने वाला चौथा देश बन जाएगा। 

गगनयान मिशन में तीन एस्ट्रोनॉट्स के क्रू को 400 किलोमीटर के ऑर्बिट में तीन दिन के लिए भेजा जाएगा और इसके बाद उनकी समुद्र पर सुरक्षित वापसी होगी। भारत की योजना अंतरिक्ष में अपना स्टेशन बनाने की भी है। इस स्टेशन का नाम भारत अंतरिक्ष स्टेशन होगा। इसकी स्थापना 2035 तक हो सकती है। 

हाल ही में ISRO ने अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के साथ मिलकर अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट NISAR का आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा से सफल लॉन्च किया था।  NISAR (NASA-ISRO सिंथेटिक अपार्चर राडार सैटेलाइट) के ऑर्बिट में पहुंचने के बाद इसके डुअल-फ्रीक्वेंसी राडार एक दिन में धरती का 14 बार चक्कर लगाएंगे। 

इससे प्रत्येक 12 दिनों में धरती पर सभी जमीन और बर्फ की सतहों की स्कैनिंग की जाएगी। इस सैटेलाइट से मिले डेटा के जरिए वैज्ञानिकों को मिट्टी की नमी की निगरानी करने में आसानी होगी। इसके साथ ही भूस्खलन और बाढ़ जैसे खतरों का बेहतर तरीके से आकलन किया जा सकेगा। ISRO और NASA के बीच इस तरह का यह पहला कोलेब्रेशन है।

Published / 2025-10-06 20:59:25
तीन वैज्ञानिकों को इम्यून सिस्टम को बेहतर समझने पर नोबेल पुरस्कार

नोबेल पुरस्कार 2025: इम्यून सिस्टम को बेहतर तरीके से समझने की खोज, इन तीन वैज्ञानिकों को चिकित्सा का नोबेल 

एबीएन नॉलेज डेस्क। शरीर की शक्तिशाली प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करना आवश्यक है अन्यथा यह हमारे अपने अंगों पर ही हमला कर सकती है। मैरी ई. ब्रुनको, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन साकागुची को इस संबंध में उनकी अभूतपूर्व खोजों के लिए 2025 का फिजियोलॉजी या मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार मिला।  

यह पुरस्कार शरीर की रक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को बेहतर समझने की खोज- पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस के लिए मिला है। इन खोजों ने अनुसंधान की नई राह खोल दी है। इससे कैंसर तथा आटोइम्यून रोगों के उपचारों को और प्रभावी बनाने में मदद मिल सकती है। 

पिछले साल का पुरस्कार अमेरिकी नागरिक विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन को सूक्ष्म आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) की खोज के लिए दिया गया था। यह सम्मान 1901 से 2024 के बीच 115 बार 229 नोबेल पुरस्कार विजेताओं को प्रदान किया जा चुका है।  

खोज की महत्वपूर्ण बातें 

पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस एक ऐसा तरीका है जिससे शरीर अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को अनियंत्रित होने और शरीर के ही ऊतकों पर हमला करने से रोकता है। जिस खोज के लिए वैज्ञानिकों ने इस साल का नोबेल दिया गया है उसमें ये पता लगाया गया है कि नियामक टी कोशिकाओं के रूप में जानी जाने वाली विशेष प्रतिरक्षा कोशिकाएं शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कैसे संतुलित रखती हैं? 

टी सेल्स, श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार हैं जो संक्रमणों से शरीर की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये बोन मैरो में उत्पन्न होती हैं और थाइमस ग्रंथि में परिपक्व होती हैं इसीलिए इनका यह नाम पड़ा है। प्रतिरक्षा प्रणाली कई प्रकार की टी कोशिकाएं बनाती है, जिनमें से प्रत्येक की विशिष्ट भूमिकाएं होती हैं। 

जहां अधिकांश टी कोशिकाएं बैक्टीरिया, वायरस और कैंसर कोशिकाओं जैसे हानिकारक आक्रमणकारियों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने वाले तंत्र की तरह काम करती हैं। वहीं नियामक टी कोशिकाएं शांतिदूतों की तरह काम करती हैं। नियामक-टी कोशिकाएं प्रतिरक्षा प्रणाली को शरीर के अपने ऊतकों पर गलती से हमला करने से रोकती हैं, जिसे आॅटो इम्यून कहते हैं।

खोज की प्रगति 

  • शिमोन सकागुची ने सन 1995 में पहली बार नियामक-टी कोशिकाओं की पहचान की और उस समय की प्रचलित मान्यता को चुनौती दी कि इम्यून टॉलरेंस केवल थाइमस में हानिकारक कोशिकाओं को हटाकर ही स्थापित होती है, इस प्रक्रिया को सेंट्रल टॉलरेंस के नाम से जाना जाता है। उन्होंने खोज के माध्यम से दिखाया कि एक अतिरिक्त परत मौजूद होती है जिसकी मदद से ये कोशिकाएं शरीर में संचारित होती हैं।  
  • मैरी ब्रुनको और फ्रेड रामस्डेल ने 2001 में फॉक्सपी3 जीन की खोज करके अगली छलांग लगाई, जो नियामक टी कोशिकाओं के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने पाया कि इस जीन में म्यूटेशन चूहों और इंसानों दोनों में गंभीर आॅटोइम्यून विकारों का कारण बनता है, जैसे कि आईपीईएक्स सिंड्रोम नामक एक दुर्लभ स्थिति में होता है। सकागुची ने बाद में साबित किया कि फॉक्सपी3 नियामक टी कोशिकाओं के निर्माण और कार्य को नियंत्रित करता है। 

इन तीनों वैज्ञानिकों के बारे में जानिए 

  1. मैरी ई. ब्रुनको (जन्म 1961) ने अमेरिका के प्रिंसटन विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और वर्तमान में सिएटल स्थित इंस्टीट्यूट फॉर सिस्टम्स बायोलॉजी में वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।  
  2. फ्रेड रैम्सडेल (जन्म 1960) ने 1987 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और वर्तमान में सैन फ्रांसिस्को स्थित सोनोमा बायोथेरेप्यूटिक्स में वैज्ञानिक सलाहकार हैं। 
  3. शिमोन साकागुची (जन्म 1951) ने 1976 में एम.डी. और 1983 में क्योटो विश्वविद्यालय, जापान से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे ओसाका विश्वविद्यालय के इम्यूनोलॉजी फ्रंटियर रिसर्च सेंटर में विशिष्ट प्रोफेसर हैं।

Published / 2025-10-04 20:39:27
गूगल क्रोम और फायरफॉक्स के लेटेस्ट वर्जन इंस्टॉल करने की सलाह

गूगल क्रोम यूजर्स के लिए बड़ा अलर्ट, सरकार ने जारी की चेतावनी, तुरंत करें ये काम 

एबीएन सेंट्रल डेस्क। भारत सरकार की एजेंसी CERT-In  ने गूगल क्रोम और मोजिला फायरफॉक्स ब्राउजर यूजर्स के लिए हाई-सीवियरिटी सिक्योरिटी अलर्ट जारी किया है। एजेंसी ने बताया कि इन ब्राउजर्स के पुराने वर्जन में कई खतरनाक कमजोरियां पायी गयी हैं, जिनका फायदा उठाकर हैकर्स संवेदनशील डेटा चोरी कर सकते हैं या डिवाइस पर मालवेयर चला सकते हैं। सरकार ने यूजर्स को तुरंत अपने ब्राउजर अपडेट करने की सलाह दी है। 

क्रोम में पायी गयी खामियां 

CERT-In  ने चेतावनी दी है कि क्रोम के उन वर्जन्स में खतरनाक बग मौजूद हैं जो लायनेस पर 141.0.7390.54 और विंडोज macOS पर 141.0.7390.54/55 से पुराने हैं। इनमें WebGPU और वीडियो में हिप बफर ओवरफ्लो स्टोरेज और टैब में डेटा लीक, मीडिया व ड्रमबॉक्स में गलत इंप्लीमेंटेशन जैसी खामियां मिली हैं। इन कमजोरियों का फायदा उठाकर कोई भी रिमोट अटैकर यूजर को मालिशियस वेबसाइट पर भेजकर सिस्टम में कोड चला सकता है और प्राइवेट डेटा तक पहुंच सकता है। 

फायरफॉक्स यूजर्स भी रहें सावधान 

मोजिला फायरफॉक्स के वर्जन 143.0.3 से पुराने और iOS के लिए 143.1 से नीचे वाले वर्जन में भी गंभीर सुरक्षा खामियां मिली हैं। इसमें कुकी स्टोरेज का सही आइसोलेशन न होना, ग्राफिक्स कैनवास 2D में इंटेजर ओवरफ्लो और जावास्क्रिप्ट इंजन में JIT मिस कंप्लीशन जैसी समस्याएं सामने आयी हैं। अगर यूजर किसी मालिशियस वेब रिक्वेस्ट पर क्लिक कर देता है तो हैकर्स सिस्टम पर कंट्रोल पा सकते हैं और ब्राउजर में सेव संवेदनशील डेटा चुरा सकते हैं। 

क्या करें यूजर्स? 

CERT-In ने दोनों अलर्ट को हाई-रिस्क कैटेगरी में रखा है और यूजर्स को तुरंत क्रोम और फायरफॉक्स के लेटेस्ट वर्जन इंस्टॉल करने की सलाह दी है। गूगल और मोजिला दोनों ने ही इन खामियों को दूर करने के लिए सिक्योरिटी पैच जारी कर दिये हैं। यूजर्स CERT-In की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर डिटेल्ड वल्नरेबिलिटी नोट्स और पैच लिंक भी देख सकते हैं।

Published / 2025-09-28 20:41:04
माइक्रोसॉफ्ट ने फिलहाल बंद की क्लाउड और एआई सर्विसेज

माइक्रोसॉफ्ट का बड़ा फैसला, तत्काल प्रभाव से बंद की गयी क्लाउड और एआई सेवाएं 

एबीएन नॉलेज डेस्क। दुनिया की प्रमुख टेक कंपनियों में से एक Microsoft ने इजरायल के खिलाफ बड़ा कदम उठाया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हलचल मच गई है। कंपनी ने इजरायल को दी जा रही क्लाउड, AI और तकनीकी सेवाएं तत्काल प्रभाव से बंद कर दी हैं। Microsoft के प्रेसिडेंट और वाइस चेयरमैन ब्रैड स्मिथ ने इस फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि यह निर्णय जासूसी के गंभीर आरोपों और जांच रिपोर्टों के आधार पर लिया गया है, जिनमें Microsoft की सेवाओं के दुरुपयोग की बात सामने आई है।

क्या है पूरा मामला?

ब्रिटिश अखबार The Guardian और इजरायली पब्लिकेशन +972 Magazine द्वारा अगस्त 2025 में की गई एक संयुक्त जांच में खुलासा हुआ था कि इजरायली सुरक्षा एजेंसियां गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों की व्यापक निगरानी कर रही हैं, और इसके लिए वे Microsoft की Azure Cloud Services का उपयोग कर रही थीं।

Microsoft ने शुरुआती तौर पर इन आरोपों को खारिज किया, लेकिन बाद में आंतरिक जांच में कुछ तथ्यों की पुष्टि होने पर यह बड़ा कदम उठाया गया। कंपनी ने साफ किया कि वह किसी भी देश को अपनी सेवाओं का उपयोग निगरानी या जासूसी के लिए नहीं करने देती, और अगर ऐसा होता है तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाती है।

किन सेवाओं पर लगी रोक?

Microsoft ने इजरायली मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस (IMOD) को भेजे नोटिफिकेशन में स्पष्ट किया है कि उनके साथ की गई सभी तकनीकी साझेदारियां अब समाप्त की जा रही हैं। इसमें शामिल हैं:

  • Azure Cloud Platform
  • AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) टूल्स
  • क्लाउड स्टोरेज सेवाएं
  • टेक्निकल सब्सक्रिप्शन और API एक्सेस
  • इन सेवाओं को तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया गया है, और इजरायल को इसकी जानकारी औपचारिक रूप से भेज दी गई है।

जांच में क्या सामने आया?

संयुक्त रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि इजरायली सेना और खुफिया एजेंसियां Microsoft की क्लाउड टेक्नोलॉजी का प्रयोग फिलिस्तीनी नागरिकों की जासूसी, पहचान और मूवमेंट ट्रैकिंग के लिए कर रही हैं। रिपोर्ट में इस बात के प्रमाण भी दिए गए कि Azure प्लेटफॉर्म पर डेटा एनालिटिक्स और AI आधारित टूल्स के जरिए फिलिस्तीनियों की निजी जानकारी इकट्ठा की जा रही थी। Microsoft ने अपनी ओर से इन आरोपों की स्वतंत्र जांच करवाई, और जब कुछ तथ्यों की पुष्टि हुई, तो कंपनी ने यह निर्णय लिया।

Microsoft का आधिकारिक बयान

ब्रैड स्मिथ ने अपने ब्लॉगपोस्ट में लिखा: Microsoft किसी भी हालत में अपनी टेक्नोलॉजी का उपयोग निगरानी या मानवाधिकार हनन जैसे उद्देश्यों के लिए नहीं होने देगा। हमने इजरायली रक्षा मंत्रालय को सूचित कर दिया है कि हमारी सेवाएं, जिनमें AI और क्लाउड स्टोरेज शामिल हैं, तत्काल प्रभाव से बंद की जा रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह कदम कंपनी की नीति के अनुसार लिया गया है, ताकि विश्व स्तर पर उसकी नैतिक और पारदर्शी छवि बनी रहे।

AI के दुरुपयोग को लेकर चिंता

इस प्रकरण ने वैश्विक स्तर पर AI और क्लाउड टेक्नोलॉजी के उपयोग को लेकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। क्या बड़ी टेक कंपनियों को इस बात की जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि उनकी सेवाओं का प्रयोग कैसे और कहां किया जा रहा है? Microsoft ने इस घटना को एक उदाहरण बनाते हुए यह साफ कर दिया है कि यदि कोई सरकार या संस्था उनके प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग करती है, तो कंपनी चुप नहीं बैठेगी।

इजरायल की प्रतिक्रिया का इंतजार

फिलहाल इजरायल की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि Microsoft के इस निर्णय से इजरायली रक्षा और साइबर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर असर पड़ सकता है।

Published / 2025-09-25 20:45:45
पृथ्वी की गतिविधियों से प्रभावित हो रहा चंद्रमा

भारत की खोज पर लगी मोहर! चंद्रमा पर लगती जा रही जंग, पृथ्वी को ठहराया जा रहा जिम्मेदार 

एबीएन नॉलेज डेस्क। चंद्रमा, जो हमेशा से शांत और निर्जीव ग्रह के रूप में जाना जाता रहा है, वहां जंग लगने की घटना ने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। चांद पर हवा का अभाव होने के बावजूद हेमेटाइट नामक लौह-समृद्ध खनिज की मौजूदगी ने इस रहस्य को और बढ़ा दिया है। हेमेटाइट आमतौर पर आॅक्सीजन और पानी के संपर्क में आने से बनता है, लेकिन चंद्रमा पर दोनों तत्व सीमित मात्रा में हैं। 

भारत के चंद्रयान-1 मिशन की रिसर्च ने भी इसी दिशा में संकेत दिये थे, जिससे अब इस खोज को और पुष्टिप्राप्ति मिली है। नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक, जंग तब बनती है जब लोहा आक्सीजन और पानी के संपर्क में आता है। हाल ही में हुए अध्ययनों में चंद्रमा की सतह, विशेषकर ध्रुवीय क्षेत्रों में, हेमेटाइट पाए गए हैं।

यह खोज चंद्रमा पर जंग लगने की प्रक्रिया को समझने में नए आयाम खोलती है।साल 2020 में भारतीय चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में हेमेटाइट की उपस्थिति की पुष्टि की थी। इस मिशन ने चंद्रमा की सतह से डेटा इकट्ठा किया, जिसमें पानी के अणुओं के प्रमाण भी शामिल हैं। नासा और हवाई इंस्टीट्यूट आफ जियोफिजिक्स एंड प्लैनेटोलॉजी के शोधकर्ताओं ने इस डेटा का विश्लेषण किया और हेमेटाइट के संकेत पाये। 

वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा पर जंग लगने में पृथ्वी का योगदान हो सकता है। चंद्रमा पृथ्वी की चुंबकीय पूंछ के संपर्क में आता है, जो आॅक्सीजन अणुओं को चंद्रमा तक ले जाने में मदद करती है। चंद्रमा के 28 दिन के चक्र में लगभग छह दिनों तक पूर्णिमा के समय यह प्रक्रिया सबसे प्रभावी होती है। यह आक्सीजन के स्रोत को समझाने में मदद करती है, हालांकि पानी की भूमिका अभी भी रहस्यमय बनी हुई है। 

जिलियांग और उनकी टीम ने प्रयोगशाला में पृथ्वी की हवा की नकल कर यह देखा कि कैसे हाइड्रोजन और आक्सीजन आयनों से चंद्रमा के लौह-समृद्ध खनिज क्रिस्टल हेमेटाइट में बदल सकते हैं। कुछ क्रिस्टलों में यह प्रक्रिया उलटकर भी होती है, जिससे लोहे में परिवर्तन होता है। यह प्रयोग चंद्रमा पर जंग लगने की संभावित प्रक्रियाओं को समझने में मददगार साबित हुआ है।

Published / 2025-09-11 11:36:15
75% बीमारियों का मूल कारण नकारात्मक सोंच से उत्पन्न ऊर्जा

एबीएन नॉलेज डेस्क। अमेरिका मे जब एक कैदी को फॉंसी की सजा सुनाई गई तो वहॉं के कुछ बैज्ञानिकों ने सोचा कि क्यों न इस कैदी पर कुछ प्रयोग किया जाय। तब कैदी को बताया गया कि हम तुम्हें फॉंसी देकर नहीं परन्तु जहरीला कोबरा सांप  डसाकर मारेंगे।

और उसके सामने बड़ा सा जहरीला सांप  ले आने के बाद कैदी की ऑंखे बंद करके कुर्सी से बॉंधा गया और उसको सॉंप नहीं बल्कि दो सेफ्टी पिन्स चुभायी गयी और क्या हुआ कैदी की कुछ सेकेन्ड मे ही मौत हो गई, पोस्टमार्टम के बाद पाया गया कि कैदी के शरीर मे सांप  के जहर के समान ही जहर है।

अब ये जहर कहॉं से आया जिसने उस कैदी की जान ले ली। वो जहर उसके खुद शरीर ने ही सदमे मे उत्पन्न किया था । हमारे हर संकल्प से पाजिटीव एवं निगेटीव एनर्जी उत्पन्न होती है और वो हमारे शरीर मे उस अनुसार होर्मोंन्स उत्पन्न करती है।

75% बीमारियों का मूल कारण नकारात्मक सोंच से उत्पन्न ऊर्जा ही है। आज इंसान ही अपनी गलत सोंच से भस्मासुर बन खुद का विनाश कर रहा है। अपनी सोंच सदैव सकारात्मक रखें और खुश रहें।

Published / 2025-09-08 13:51:12
तीन घंटे से अधिक दिखा ब्लड मून का नजारा

  • चंद्रग्रहण 2025 में दुनियाभर में दिखा ब्लड मून, 3 घंटे से अधिक रही चांद पर धरती की छाया

एबीएन नॉलेज डेस्क। खगोलीय घटनाओं को वैज्ञानिक नजरिए से देखने-समझने का अभ्यास करने वाले लोगों के लिए चंद्र ग्रहण धर्म से इतर भी गूढ़ अर्थ रखता है। 

आज साल 2025 के अंतिम चंद्र ग्रहण के दौरान देशभर में ब्लड मून देखा गया। लगभग तीन साढ़े घंटे से अधिक समय तक चांद पर धरती की छाया पड़ती रही। चंद्रग्रहण की पूरी अवधि में पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच रही और चांद पर सूर्य का प्रकाश सीधे नहीं पड़ा। 

देशभर से इस खगोलीय घटना की तस्वीरें सामने आई हैं। दिल्ली-एनसीआर, लखनऊ, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम और चेन्नई जैसे शहरों से चांद और ब्लड मून की अलग-अलग छवियां सामने आईं। देखिए ब्लड मून यानी रक्त जैसी लालिमा लिए चंद्रमा की चुनिंदा तस्वीरें।

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