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Published / 2025-11-09 20:41:03
भारत की श्रम संहिताएं: अनौपचारिकता से समावेशन की ओर

श्री कार्तिक नारायण 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। जैसे विश्व भर के देश प्रतिभाओं के लिए अपने भीतर देख रहे हैं। ऐसे में भारत को भी औपचारिक, औचित्यपूर्ण और गरिमामय रोजगार पैदा कर आगे बढ़ना होगा। समूची दुनिया में आव्रजन को लेकर चिंता, अर्थव्यवस्थाओं और राजनीतिक व्यवस्थाओं को नया स्वरूप दे रही है। वैश्विक प्रतिभाओं का स्वागत करने वाले देश अब बदल रहे हैं, वे वैश्विक प्रतिभाओं के लिए पुल बनाने के बजाय अवरोध पैदा कर रहे हैं। 

उन्होंने प्रतिभाओं की तलाश अपने अंदर ही शुरू कर दी है। भारत इस बदलती हुई दुनिया में संपन्नता के लिए सिर्फ प्रतिभाओं के निर्यात पर निर्भर नहीं रह सकता। हमें उत्पादन के साथ ही अवसरों के लिहाज से भी आत्मनिर्भर बनना होगा। इसके जरिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि स्वदेशी प्रगति के साथ ही देश में अच्छे भुगतान वाले, मानकीकृत और गरिमापूर्ण रोजगार पैदा हों। 

मार्टिन लूथर किंग ने एक समय कहा था, मानवता को ऊपर उठाने वाले हर श्रम की गरिमा और महत्व है। इसे श्रमसाध्य उत्कृष्टता के साथ किया जाना चाहिए। भारत की नई श्रम संहिताएं इस आदर्श को जमीन पर उतारने की दिशा में एक कदम हैं। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश को बनाने, आगे ले जाने और शक्ति देने वाले लाखों लोग सिर्फ कामगार नहीं हों, बल्कि प्रगति में हिस्सेदार बनें। 

इन संहिताओं का लक्ष्य अनौपचारिकता को समावेशन, स्वेच्छा को आंकड़ों और असुरक्षा को सुदृश्यता से बदल कर काम की गरिमा बहाल करना है। भारत का श्रम परिवेश वर्षों से पैबंदों वाली दरी के समान रहा है। देश के 29 श्रम कानून बेशक अच्छे इरादे से लाए गए हों लेकिन सब मिल कर अस्पष्टता पैदा करते रहे थे। इसके परिणामस्वरूप अकुशलता का संतुलन दिखाई पड़ता था। कामगार में असुरक्षा थी और नियोक्ता संदेह में रहते थे। 

सरकार ने इन कानूनों को वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल सुरक्षा की चार संहिताओं में पिरो देने का फैसला किया। यह कदम सिर्फ एक प्रशासनिक सुधार नहीं है। आधुनिकीकरण के इस अभियान में स्वीकार किया गया है कि संरक्षण और उत्पादकता को एक साथ मिलकर बढ़ना चाहिए।

इस सुधार का संबंध दृश्यता से है। नियुक्तिपत्र, वेतन की पर्ची और डिजिटल रिकॉर्ड के बिना कामगार, सरकार और बाजार दोनों की ही नजरों से ओझल रहता है। औपचारीकरण इस स्थिति में बदलाव लाता है। लिखित प्रमाण वाला हर रोजगार एक ऐसा जीवन पैदा करता है जिसकी मान्यता हो। हर डिजिटल रिकॉर्ड सामाजिक सुरक्षा से लेकर बीमा और गतिशीलता तक जाने वाला पुल होता है। 

यह बदलाव नियोक्ताओं को भी अनिश्चितता के बजाय एक ढांचा और स्वेच्छा की जगह आंकड़े प्रदान करता है। नियुक्ति के हर संबंध का रिकॉर्ड हो तो विश्वास को एक बुनियाद मिल जाती है। वेतन को ही लें। भारत में विभिन्न राज्यों और उद्योगों की अलग-अलग हजारों न्यूनतम मजदूरी दरें थीं। आस-पड़ोस के जिलों के कामगारों तक को एक ही काम के लिए काफी अलग-अलग रकम मिलती थी। 

वेतन संहिता में मजदूरियों की एक समान परिभाषा के साथ राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी स्थापित की गयी। इसके जरिए सुनिश्चित किया गया कि किसी को भी एक गरिमापूर्ण न्यूनतम सीमा से नीचे मजदूरी नहीं मिले तथा समान कार्य के लिए एक बराबर मजदूरी सिर्फ आडंबर नहीं, बल्कि नियम बन जाये। इससे श्रम के एक से दूसरे स्थान पर गमन में भी मदद मिलती है। इस संहिता ने सुनिश्चित किया कि एक से दूसरे राज्य में जाने वाले मजदूर के वेतन के अधिकार भी उसके साथ चलें। 

औद्योगिक संबंध संहिता लचीलेपन और निष्पक्षता के बीच एक समान संतुलन बनाती है। भारत की अर्थव्यवस्था अब विनिर्माण, सेवाओं और तेजी से बढ़ते गिग क्षेत्र का मिश्रण है। लॉजिस्टिक्स, खुदरा और निर्माण जैसे कई उद्योग मौसमी माँग और परियोजना-आधारित कार्य के साथ संचालित होते हैं। निश्चित अवधि के अनुबंध अब वैध और मानकीकृत हो गये हैं। अब कंपनियां वेतन या लाभ की समानता से समझौता किए बिना नियुक्ति कर सकती हैं। 

कर्मचारियों के लिए लचीलेपन का मतलब अब असुरक्षा नहीं है। पुनर्कौशल निधि का निर्माण प्रतिक्रियात्मक कल्याण से सक्रिय रोजगार की ओर बदलाव का संकेत है। नौकरी छूटने का मतलब अब चट्टान से गिरना नहीं है, यह नया सीखने और पुन: प्रवेश करने का एक सेतु बन जाता है। सामाजिक सुरक्षा संहिता यह मानती है कि भारत का कार्यबल अब फैक्टरियों तक ही सीमित नहीं है। ड्राइवर, डिलीवरी पार्टनर और फ्रीलांसर जैसे काम डिजिटल अर्थव्यवस्था के नए निर्माता हैं और अब सुरक्षा के दायरे में भी हैं। 

यह स्वीकार करते हुए कि काम की प्रकृति बदलती रहती है लेकिन सुरक्षा की जरूरत नहीं बदलती, नए प्लेटफॉर्म उनके कल्याण के लिए केंद्रीय कोष में योगदान देंगे। स्व-मूल्यांकन, संगठित फाइलिंग और डिजिटल रिकॉर्ड, कागजों के ढेर की जगह पारदर्शिता और फाइल का शीघ्र पता लगाने की क्षमता बढ़ाते हैं। इससे अनुपालन सरल हो जाता है और नीति-निर्माण अधिक स्मार्ट हो जाता है। 

प्रतिष्ठा और सुरक्षा पर ध्यान देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। संहिता केवल व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियां हेलमेट और रेलिंग लगाने के बारे में ही नहीं बनायी गयी हैं। यह कार्यस्थल पर सम्मान के लिए बनायी गयी हैं। नियुक्ति पत्र अनिवार्य हो गये हैं, स्वास्थ्य जांच के मानक बनाये गए हैं और महिलाएं अब सभी क्षेत्रों और शिफ्टों में काम कर सकती हैं, बशर्ते सुरक्षा उपायों में ऐसा प्रावधान सुनिश्चित किया गया हो जिससे बड़ी संख्या में महिलाएं कार्यबल में शामिल हो सके। 

प्रवासी मजदूर, जिन्हें लंबे समय से अपने ही देश में बाहरी समझा जाता रहा है, अब जहां भी वे काम करते हैं, कल्याणकारी लाभ प्राप्त कर सकेंगे। यह समावेशन का वास्तविक रूप कहा जा सकता है। सरलीकरण को शायद सबसे कम होने वाले लाभ के रूप में आंका गया है। अब 29 की बजाय एक पंजीकरण, एक लाइसेंस, एक रिटर्न भरना है। निरीक्षक अब सुविधा प्रदाता हैं। अनुपालन की बातचीत दंड की बजाए साझेदारी की ओर बढ़ रही है। 

छोटे उद्यमों के लिए जो भारत के रोजगार की रीढ़ हैं, उनकी सुविधा के लिए अब अनुमोदन के लिए कम और व्यवसाय निर्माण के लिए अधिक समय है। औपचारिकता सिर्फ कागजी कार्रवाई नहीं है, यह उत्पादकता बढ़ाती है। कार्यान्वयन में समय लग सकता है। राज्यों को अपने नियमों को एक समान बनाना होगा, डिजिटल प्रणालियों को सुचारू रूप से काम करना होगा और नियोक्ताओं और श्रमिकों दोनों को एक दूसरे के अनुकूल बनाना होगा। 

लेकिन दिशा मायने रखती है। ये संहिताएं एक स्पष्ट संकेत देती हैं। भारत एक ऐसा देश बनना चाहता है जहां नौकरियां न केवल सृजित हों, बल्कि उनकी गणना भी हो जिनमें लचीलापन और निष्पक्षता हो और जहां श्रमिक और नियोक्ता समान भागीदार हों, न कि एक दूसरे के विरोधी। विश्व भर के देश प्रतिभाओं के लिए अपने अंदर की ओर देख रहे हैं। भारत को अपनी घरेलू श्रम प्रणाली को मजबूत करना होगा जो पारदर्शी, सुबाह्य और निष्पक्ष हो। 

इन सुधारों का असली फायदा तब महसूस होगा जब भारत का विकास न केवल ज्यादा रोजगारों से, बल्कि बेहतर औपचारिक, उच्च-वेतन और सम्मानजनक रोजगार से भी प्रेरित हो। इन सुधारों का अगर सावधानी और निरंतरता के साथ क्रियान्वयन किया जाए, तो ये सुधार भारत की कार्यप्रणाली को नया रूप दे सकते हैं। ये अनौपचारिकता को समावेशिता में और काम को गरिमा में बदल सकते हैं। इसको सही रूप में व्यक्त करने के लिए कर्नाटक के 12वीं सदी के बासवन्ना के इस शाश्वत संदेश कायाकावे कैलासा- काम ही स्वर्ग है से बेहतर शायद ही कोई और विचार हो। 

उनका आंदोलन मोची से लेकर विद्वान तक, ईमानदारी से किए गए हर पेशे को पवित्र मानता था। नयी श्रम संहिताएं इसी भावना को आगे बढ़ाती हैं कि गरिमा पद में नहीं, बल्कि प्रयास में निहित है। क्योंकि अंतत: सुधार की असली परीक्षा उसके पारित होने में नहीं, बल्कि उसको व्यवहार में लाने पर होती है। (लेखक अपना जॉब्स के मुख्य कार्याधिकारी हैं।)

Published / 2025-11-06 22:08:32
राहुल की प्रेस कांफ्रेंस यानी बिहार में हार की पेशबंदी

डॉ आशीष वशिष्ठ 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार में पहले चरण की 121 सीटों पर मतदान से एक दिन पहले दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग और भाजपा पर गंभीर आरोप लगाये। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक हैंडल से ट्वीट कर हरियाणा में डुप्लिकेट वोटर्स से लेकर बल्क वोटर्स तक, कैटेगरी वाइज आंकड़े भी बताये। इससे पहले भी राहुल गांधी वोट चोरी का मुद्दा उठा चुके हैं। लेकिन वो चुनाव आयोग में शपथ पत्र देकर शिकायत और अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाते हैं। बस प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से बेबुनियाद आरोप और दावे करते रहते हैं। असल में पटना से करीब 1100 किलोमीटर दूर जब राहुल गांधी हरियाणा विधानसभा चुनाव में फर्जी वोटिंग के किस्से सुना रहे थे तब ऐसा लग रहा था मानो वो बिहार में महागठबंधन की संभावित हार के लिए पेशबंदी कर रहे हैं। 

राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों पर भाजपा ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। चुनाव आयोग ने भी कहा है कि कांग्रेस को डुप्लीकेट मतदाताओं को हटाने के लिए शिकायत दर्ज करवानी चाहिए थी। मीडिया रिपोर्ट के अुनसार हरियाणा राज्य की मतदाता सूची के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की गयी थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मतदाता सूची के खिलाफ कोई अपील नहीं दायर की गयीं। 

राहुल गांधी के इस दावे को लेकर काफी विवाद हो रहा है। इनमें भी सबसे बड़ा विवाद तो ये है कि राहुल गांधी को ये कैसे पता चला कि जिन 22 वोटर कार्ड पर एक ही मॉडल की तस्वीर है, उन वोटर कार्ड से चुनावों में वोट डाले गये हैं। ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि राहुल गांधी जिस वोटर लिस्ट को दिखा कर ये पूरा दावा कर रहे हैं, वो वोटर लिस्ट मतदान के बाद की नहीं बल्कि मतदान से पहले की है। सोचिये मतदान से पहले की वोटर लिस्ट से राहुल गांधी को ये कैसे पता चला कि इन वोटर कार्ड से चुनाव में वोटिंग भी हुई। मीडिया की पड़ताल में राहुल गांधी के दावे झूठे साबित हुए। 

सवाल यह भी है कि अगर कोई गड़बड़ी थी तो कांग्रेस के बूथ लेवल एजेंट्स ने संशोधन के दौरान एक ही नाम की एक से अधिक प्रविष्टियों को रोकने के लिए कोई दावा या आपत्ति क्यों नहीं दर्ज की? वहीं अगर कई नामों के दोहराव से बचना था तो संशोधन के दौरान कांग्रेस के बूथ-स्तरीय एजेंटों (बीएलए) ने कोई दावा या आपत्ति क्यों नहीं उठायी? 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बिहार और हरियाणा दोनों में कांग्रेस के बूथ एजेंटों ने संशोधन के दौरान दोहराये गये नामों को लेकर कोई दावा या आपत्ति नहीं दर्ज की। सवाल यह भी है कि वोटर लिस्ट चुनाव से पहले उपलब्ध होती है। अगर कोई नाम छूट गया है तो उसे जुड़वाने की व्यवस्था होती है। वास्तव में, कांग्रेस और कई विपक्षी दल सत्ता हासिल करने के लिए किसी ने किसी बहाने देश की जनता को संवैधानिक संस्थाओं के प्रति उकसाते रहते हैं। चुनाव आयोग, ईडी, सीबीआई से लेकर तमाम दूसरी संवैधानिक संस्थाओं को कटघरे में खड़ा करते रहते हैं। राहुल गांधी तो चुनाव आयोग के अधिकारियों को खुली धमकी दे चुके हैं कि उनकी सरकार आयेगी तो वो जांच करवायेगी। वैसे अब तक चुनाव आयोग और चुनाव प्रणाली को लेकर विपक्ष के आरोप फर्जी और बेबुनियाद ही साबित हुए हैं। 

प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने मीडिया का परिचय बिहार के कुछ ऐसे लोगों से भी कराया है, जिनके नाम वोटर लिस्ट से काट दिये गये हैं और इन लोगों का कहना है कि चुनाव आयोग की तरफ से उनके पास कभी कोई आया ही नहीं और बिना बताये उनका नाम वोटर लिस्ट से डिलीट कर दिया गया। अब यहां समस्या ये है कि राहुल गांधी देश को ये बता रहे हैं कि वोटर लिस्ट में क्या त्रुटियां हैं लेकिन चुनाव आयोग जब इन त्रुटियों को सुधारने के लिए वोटर लिस्ट का रिवीजन करना चाहता है तो वे इसका भी विरोध करते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी एसआईआर का समर्थन कर रहे हैं या इसका विरोध? जिन लाखों वोटरों का वोट कटा है, वो चुपचाप घरों में बैठकर राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस का इंतजार क्यों कर रहे थे, उन्हें तो सड़कों पर उतर आना चाहिए था। 

वास्तव में, राहुल गांधी एक अगंभीर राजनीतिज्ञ हैं। उनकी राजनीति का मकसद सेवा की बजाय मेवा खाना और कमाना है। देश की जनता से जुड़ाव दिखाने के लिए वो किसान, ड्राइवर, कारपेंटर, हलवाई, कुली या पुताई वाले का अभिनय करते दिखते जरूर हैं लेकिन राजनीति और देश को लेकर उनकी समझ अल्प है। वहीं, उनकी एक समस्या यह भी है कि मोदी सरकार के खिलाफ वो जो आरोप लगाते हैं, उनका कोई ठोस आधार या प्रमाण उनके पास नहीं है। इस संबंध में उनके तमाम आरोप और दावे अतीत में गलत साबित हुए हैं। मोदी सरकार के खिलाफ वे पिछले एक दशक में कई आरोप लगा चुके हैं लेकिन चंद दिनों के शोरशराबे के बाद वे कोई नया आरोप लगाने लगते हैं। 

देश की जनता मोदी और राहुल गांधी के बीच का फर्क सही से समझ रही है इसलिए कांग्रेस सत्ता से दूर है। राहुल गांधी के पास पक्के सुबूत हों तो उन्हें छाती ठोक कर चुनाव आयोग में शपथ पत्र दाखिल कर शिकायत दर्ज करनी चाहिए, अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए। लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि उनके आरोप केवल जनता को उकसाने के लिए हैं, संवैधानिक संस्थाओं और व्यवस्थाओं के प्रति नाराजगी का माहौल बनाने का है। कांग्रेस और विपक्ष के कई दलों का इको सिस्टम देश में अस्थिरता, अशांति और अराजकता का माहौल बनाने की फिराक में है। 

देशी राजनीतिक दलों के इन षड्यंत्रों में विदेशी ताकतें खाद-पानी मुहैया करा रही हैं। आजकल राहुल गांधी जेन जी को बहला फुसलाकर सड़कों पर उतारना चाहते हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरूआत में राहुल गांधी ने कहा कि वोट चोरी रोकने के लिए भारत के जेन-जी को आगे आना होगा। राहुल गांधी बार-बार जेन-जी युवाओं का जिक्र कर रहे हैं, जिससे सवाल खड़ा होता है कि क्या वो भारत के युवाओं को सरकार के खिलाफ आंदोलन करने के उकसा रहे हैं? ये आरोप भाजपा लगा रही है। पिछले कुछ महीनों में जेन-जी युवाओं ने सिर्फ नेपाल में सरकार के खिलाफ हिंसक आंदोलन नहीं किया है, बल्कि मोरक्कों, मेडामास्कर, पेरू, फिलीपींस, केन्या और यहां तक कि इंडोनेशिया में भी चुनी हुई सरकारों के खिलाफ जेन-जी युवा हिंसक आंदोलन कर चुके हैं। 

इनमें कुछ देशों में उन्होंने तख्तापलट भी कर दिया है। पिछले साल बांग्लादेश में भी जो तख्तापलट हुआ था, उसके पीछे भी जेन-जी छात्रों का हिंसक आंदोलन था, जिससे अब भाजपा राहुल गांधी की मंशा पर सवाल उठा रही है। जिस तरह विदेशी ताकतें भारत के बढ़ते कदमों को रोकना चाहती हैं। ऐसे में विपक्ष खासकर कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी और व्यवहार इस ओर इशारा करता है कि वो सत्ता हासिल करने के लिए वोट की बजाय तख्तापलट पर ज्यादा यकीन करते हैं। कुल मिलाकर जमीन और जनता से कटे नेता और राजनीतिक दल बिहार चुनाव में अपनी हार देखकर वोट चोरी का पुराना राग अभी से गाने लगे हैं। राहुल गांधी वोट चोरी का राग सबसे ऊंची आवाज में गा रहे हैं। (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैंं।)

Published / 2025-11-03 20:18:06
दलहन आत्मनिर्भरता मिशन

डॉ देवेश चतुर्वेदी 

दलहन आत्मनिर्भरता मिशन: किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में देश का बड़ा प्रयास 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। दलहन, भारत की खाद्य और कृषि परंपराओं का एक अभिन्न अंग हैं, जो नागरिकों की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ करोड़ों किसानों को आजीविका भी प्रदान करती हैं। दलहन, स्वास्थ्यप्रद होने के साथ-साथ प्रोटीन का भी एक प्रमुख स्रोत हैं। 
प्रधानमंत्री ने दिनांक 11 अक्टूबर, 2025 को वर्ष 2030-31 तक दलहन आत्मनिर्भरता में वृद्धि करने हेतु 11,440 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ दलहन आत्मनिर्भरता मिशन का शुभारंभ किया। 

मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा, दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन  का उद्देश्य न  सिर्फ दाल उत्पादन में वृद्धि करना है, अपितु पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराकर भावी पीढ़ियों को सशक्त बनाना भी है। मिशन का उद्देश्य, उच्च उपज वाले बीजों और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करने के साथ-साथ दलहन की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए पोषण सुरक्षा प्राप्त करने  पर केन्द्रित है।  

दलहन उत्पादन की चुनौतियां 

भारत में फसल वर्ष 2014-2016 के दौरान दलहन उत्पादन कम हुआ, इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, भारत सरकार ने उत्पादन बढ़ाने के लिए कई कदम उठाये हैं। इन निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप, दलहन उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यद्यपि घरेलू दलहन उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है फिर भी दलहन की खपत आपूर्ति से अधिक बनी हुई है, जिसके फलस्वरूप समय-समय पर दालों के आयात की आवश्यकता पड़ती है। 

लंबे समय से आ रही आयात की चुनौतियों को दूर करने हेतु दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता आवश्यक है। अधिकांशत: वर्षा सिंचित दलहन फसलें अनियमित वर्षा और सूखा, दोनों ही स्थितियों से प्रभावित होती हैं। मौसम संबंधी अनिश्चितताओं के अलावा, कीटों और रोगों का खतरा तथा उन्नत बीजों की सीमित उपलब्धता के कारण कम उत्पादकता भी दलहन के उत्पादन को प्रभावित करती है।  

दलहन आत्मनिर्भरता मिशन में पांच वर्षों की लक्षित अवधि के भीतर भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को बदलने की अपार क्षमता है। इस मिशन का उद्देश्य उत्पादकता और उत्पादन में वृद्धि करके इन चुनौतियों का सामना करना है इसमें दलहन की खेती किसानों के लिए अधिक लाभदायक और विश्वशनीय बनेगी साथ ही साथ राष्ट्र के लिए एक स्थाई और प्रोटीन युक्त खाद्य स्रोत सुनिश्चित होगा।  

दलहन में आत्मनिर्भरता हेतु  रणनीति 

दलहन आत्मनिर्भरता मिशन, बीज से लेकर बाजार तक, एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए इस अंतर को कम करने का प्रयास करता है, जिससे अंतत: उत्पादन, उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि होगी। 

यह मिशन, प्रभावी कार्यान्वयन और व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए किसान उत्पादक संगठनों और सहकारी समितियों की अधिक भागीदारी के साथ एक क्लस्टर-आधारित कार्यनीति का पालन करेगा। लक्षित उपायों के साथ क्षेत्र और उपज क्षमता के आधार पर फसल विशिष्ट क्लस्टर विकसित किये जायेंगे। 

इस मिशन के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह जैसे संस्थानों की मदद से अधिक उपज वाले, जलवायु- सहिष्णु और उच्च तापमान प्रतिरोधी बीज विकसित किये जायेंगे। यह मिशन, एक प्रभावी बीज श्रृंखला के माध्यम से अधिक उपज देने वाली किस्म के बीजों के उत्पादन और वितरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करेगा। 

इससे गुणवत्तापूर्ण ब्रीडर, फाउंडेशन और प्रमाणित बीजों की किसानों तक पहुंच सुनिश्चित होगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों और राज्य कृषि विभागों द्वारा प्रदर्शन के माध्यम से किसानों को बेहतर कृषि पद्धतियों से अवगत कराया जायेगा। लक्षित चावल परती भूमि में संभावित विस्तार, फसल विविधीकरण और अंतर-फसली के जरिए दलहन की खेती के अंतर्गत क्षेत्र विस्तार में सहायता मिलेगी।  

आत्मनिर्भर दलहन की दिशा में सशक्त पहल 

फसलोपरांत नुकसान को कम करने और किसानों को बेहतर मूल्य उपलब्ध कराने में सहायता हेतु देशभर में 1000 प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की जायेंगी। आगामी चार वर्षों तक सभी पंजीकृत और इच्छुक किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तुअर, उड़द और मसूर की खरीद की सुविधा सुनिश्चित की जायेगी। आशा है कि इन प्रयासों से किसानों में विश्वास बढ़ेगा, कीमतों में स्थिरता आयेगी और सतत आय सुनिश्चित होगी।

ऐसे सकारात्मक प्रयास, अधिक से अधिक किसानों को दलहन की खेती करने तथा क्षेत्र विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित कर, दलहन की खेती में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकते हैं। यह मिशन अधिक उत्पादन और उचित मुनाफा सुनिश्चित कर, दलहन की खेती करने वाले किसानों में विश्वास जागृत करेगा और देश के प्रोटीन-आधार को सुदृढ़ बनायेगा। 

इस मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक, दलहन की खेती के क्षेत्रफल को वर्ष 2023-24 में 275 लाख हेक्टेयर के मुकाबले बढ़ाकर 310 लाख हेक्टेयर करना और उत्पादन को 242 लाख टन से बढ़ाकर 350 लाख टन करना तथा दलहन उत्पादकता के स्तर को 881 किग्रा/ हेक्टेयर से बढ़ाकर 1130 किग्रा/ हेक्टेयर करना है। इस मिशन से सीधे तौर पर लगभग 2 करोड़ किसानों को सीधे लाभान्वित होने की आशा है। 

उत्पादन लक्ष्यों से परे, इस मिशन में दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सतत और जलवायु-अनुकूल कृषि को अपनाने की परिकल्पना की गयी है, जिससे जल संरक्षण होगा और नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य समृद्ध होगा तथा रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी। 

खेत-खलिहानों में हरियाली, भविष्य में खुशहाली 

सरकार का लक्ष्य, इस मिशन को सूक्ष्म सिंचाई, मशीनीकरण, फसल बीमा और कृषि ऋण जैसी तत्कालीन योजनाओं से जोड़कर, दीर्घकालिक स्थिरता के लिए सहक्रिया और संयोजन को बनाना है। इसके अतिरिक्त, प्रसंस्करण, पैकेजिंग और संपूर्ण दलहन मूल्य श्रृंखला को बढ़ाने में सहायता की जायेगी। 

यह मिशन, भारत के विजन 2047 के अनुरूप है, जो खाद्य-सुरक्षा, सतत और आत्मनिर्भर कृषि क्षेत्र की परिकल्पना करता है। किसानों को बेहतर बीज, सुनिश्चित बाजार और आधुनिक तकनीक प्रदान कर, सरकार एक दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है, जो किसान और मिट्टी दोनों को महत्व देती है। 

जैसे-जैसे भारत दलहन में आत्मनिर्भरता के निकट पहुंच रहा है, यह मिशन खाद्य और पोषण सुरक्षा की दिशा में देश की यात्रा का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। अंतत: दलहनों में आत्मनिर्भरता मिशन फसलों में निवेश से कहीं अधिक है, यह आत्मविश्वास में निवेश है : किसानों का आत्मविश्वास जो अब इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि उनकी उपज का मूल्य और भविष्य दोनों सुरक्षित हैं।   (लेखक सचिव और संजय कुमार अग्रवाल, संयुक्त सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार हैं।)

Published / 2025-11-03 20:14:47
हर घर तक पहुंचेगा आरएसएस का संदेश

5 नवंबर से तीन सप्ताह का गृह संपर्क अभियान 

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक, जबलपुर (30 अक्टूबर - 1 नवंबर 2025) 

संजय कुमार  

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। जबलपुर में 30 अक्टूबर से 1 नवम्बर 2025 तक आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई। देशभर के सभी प्रांतों से आये प्रतिनिधियों ने इस बैठक में भाग लिया। इसमें संघ के विविध कार्यों, संगठन की विस्तार योजना, राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक पुनर्जागरण एवं सामाजिक समरसता के विषयों पर व्यापक चर्चा हुई। 

श्रद्धांजलि अर्पण 

बैठक में देशभर की 207 दिवंगत विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। इनमें झारखंड प्रांत के चार विशिष्ट व्यक्तित्व शामिल रहे। इन महान विभूतियों के राष्ट्र, समाज एवं जनसेवा के प्रति योगदान का भावपूर्ण स्मरण किया गया। 

  1. दिशोम गुरु नाम से विख्यात स्व. शिबू सोरेन जी (पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड) 
  2. स्व. चन्द्रशेखर दुबे जी (ददई दुबे - प्रसिद्ध नाम) 
  3. स्व. राजेश जी (बऊआ जी, धनबाद) 
  4. स्व. सुधीर अग्रवाल जी (लोहरदगा) 

विजयादशमी उत्सव 2025 - व्यापक जनभागीदारी 

इस वर्ष देशभर में 62,555 स्थानों पर विजयादशमी उत्सव आयोजित हुए। झारखंड प्रांत में 1783 स्थानों पर कुल 1879 विजयादशमी उत्सव संपन्न हुए, जिनमें 74,347 लोगों की उपस्थिति रही। 

झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के 1,264 मंडलों में से 948 मंडलों में कार्यक्रम हुए। आस-पास के मंडलों के सम्मिलन से कुल 1,016 मंडलों का प्रतिनिधित्व 317 स्थानों पर हुआ। 31,678 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित रहे तथा 390 स्थानों पर पथ संचलन आयोजित हुए। यह कार्यक्रम झारखंड के सभी जिलों और अंचलों में आयोजित हुए, जिससे संघ के कार्य का व्यापक प्रसार एवं समाज की गहरी सहभागिता परिलक्षित हुई।

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा : 150वीं जयंती वर्ष पर विशेष विवेचन 

बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने अपने वक्तव्य में धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा केवल जनजातीय समाज के नायक नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत की आत्मा के प्रतीक हैं, जिन्होंने स्वराज, स्वाभिमान, संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए अल्पायु में ही अद्वितीय संघर्ष किया। 

अबुआ दिसुम, अबुआ राज (अपना देश, अपना राज) का उनका उद्घोष आज भी जन-जागरण का प्रेरक संदेश है। उन्होंने अंधविश्वास, अन्याय और पाखंड के विरुद्ध जनचेतना जगायी और समाज को एकता, आत्मनिर्भरता व धर्मनिष्ठा का मार्ग दिखाया। 

सरकार्यवाह ने कहा कि बिरसा मुंडा के जीवन से आज के समाज को आत्मगौरव, एकात्मता और संगठन की प्रेरणा लेनी चाहिए। उनके विचार और कार्य पथ हमें स्वत्व बोध तथा स्वाभिमान के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। 

15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती जनजातीय गौरव दिवस के रूप में पूरे देश में मनायी जाती है। मौके पर झारखंड प्रांत में अनेक कार्यक्रम एवं श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की जायेंगी, जिनमें बिरसा मुंडा के जीवन, संघर्ष और विचारों को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया है। 

संघ शताब्दी वर्ष की ओर अग्रसर : व्यापक गृह संपर्क अभियान 

बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि संघ शताब्दी वर्ष (2025-26) को ध्यान में रखते हुए आगामी महीनों में विविध कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। इसी क्रम में 5 नवंबर 2025 से तीन सप्ताह तक चलने वाला गृह संपर्क अभियान प्रारंभ होगा। 

इस अभियान का उद्देश्य प्रत्येक परिवारों से सीधा संवाद स्थापित करना है। संघ के स्वयंसेवक मोहल्लों, बस्तियों और ग्रामों में टोली बनाकर प्रत्येक घर तक पहुंचेंगे, संघ के विचार, कार्य एवं साहित्य के माध्यम से समाज से आत्मीय संपर्क स्थापित करेंगे। 

इस अभियान के माध्यम से समाज के मानस के लिए पंच परिवर्तन यानि सामाजिक समरसता, कुटुंब भाव, पर्यावरण, स्व का बोध व नागरिक कर्तव्य  के माध्यम से समाज में समरसता, पारिवारिक मूल्य एवं राष्ट्रभाव को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है। 

राष्ट्रीय स्मरण : वंदे मातरम् एवं गुरु तेगबहादुर जी 

बैठक में दो अन्य ऐतिहासिक प्रसंगों का भी उल्लेख किया गया। वंदे मातरम् की रचना के 150 वर्ष पूर्ण होने पर मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया। श्री गुरु तेगबहादुर जी के 350वें प्रकाश वर्ष पर उनके अद्वितीय बलिदान एवं भारतीय परंपरा की रक्षा हेतु किये गये योगदान का स्मरण किया गया। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, झारखंड प्रांत ने इस अवसर पर संकल्प लिया कि  समरस, संगठित और स्वाभिमानी समाज ही आत्मनिर्भर भारत की आधारशिला बनेगा। संघ के स्वयंसेवक इस भाव को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आगामी कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से सहभागी होंगे। (लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यवाह हैं।)

Published / 2025-11-01 11:07:52
साहित्य समाज का दर्पण है...

त्रिवेणी दास

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी इस कथन को स्थापित किया था। समाज की छवि, आर्थिक शैक्षणिक स्थिति, संस्कृति, परंपरा एवं विरासत और विचारधारा को उसका साहित्य ही स्पष्ट करता है।

समाज की वास्तविकता का प्रतिबिंब तथा उसकी सामाजिक गतिविधि का लेखा-जोखा उसका अपना साहित्य ही होता है। तत्कालीन युग का साहित्य उस समय के समाज का विचारधारा, उसके संघर्ष एवं उन्नति का आलेख होता है।

रामायण महाभारत तथा विभिन्न धर्मो के ग्रंथ तत्कालीन युग के साहित्य के रूप में लोक-व्यवहार को प्रतिबिंबित करता है। सामाजिक जीवन-शैली की मर्यादा को रेखांकित करता है। सफलता एवं असफलता के कारणों की शिक्षा देता है।

लोक व्यवहार इतना महत्वपूर्ण है कि वही व्यक्तित्व के प्राथमिक परिचय का आधार बन जाता है। वाणी (बोलचाल) व्यवहार का प्रमुख घटक है। पूरे समाज का लोक व्यवहार उसके साहित्य से समझा जा सकता है।

जिस समाज के पास अपना साहित्य नहीं होता है अथवा साहित्य की रचना में अभिरुचि नहीं होती है वह समाज संसार की नजरों से ओझल हो जाता है तथा अपनी पहचान के संकट से जूझता रहता है।

समाज के पास उपलब्ध साहित्य मात्र पूजा की वस्तु नहीं होती है बल्कि इसका अध्ययन एवं लोक व्यवहार में उतारने की आवश्यकता है जिससे सब प्रकार के सफलता एवं संतुष्टि प्राप्त किया जा सके। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Published / 2025-10-31 19:30:17
कानून के ज्ञाता, सादगी के प्रतीक और समाजसेवा के दीपक थे प्रो विष्णु चरण महतो

मृत्युंजय प्रसाद 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। झारखंड की धरती ने अनेक प्रतिभाओं को जन्म दिया है, पर उनमें एक नाम सदा श्रद्धा से लिया जाता है — प्रोफेसर विष्णु चरण महतो। वे केवल एक कानून के अध्येता नहीं, बल्कि सादगी, ईमानदारी, और जनसेवा के जीवंत प्रतीक थे। 
छोटानागपुर विधि महाविद्यालय के प्राध्यापक, सिल्ली प्रखण्ड के प्रथम प्रमुख, और झारखंड आंदोलन के प्रखर योद्धा के रूप में उन्होंने जो छाप छोड़ी, वह आज भी अविस्मरणीय है। 

ज्ञान के पथिक से समाज के पथप्रदर्शक तक 

23 फरवरी 1926 को सिल्ली प्रखण्ड के कांटाडीह गांव में जन्मे प्रो. महतो एक साधारण किसान परिवार से थे, लेकिन उनके सपने असाधारण थे। बाल्यकाल से ही वे मेधावी, गंभीर और अनुशासित विद्यार्थी रहे। 

रांची जिला स्कूल से मैट्रिक, पटना विश्वविद्यालय से स्नातक और पटना विधि महाविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय पटना उच्च न्यायालय में कार्य किया। लेकिन समाज और शिक्षा के प्रति लगाव ने उन्हें रांची वापस खींच लाया। यहां वे न केवल वकालत करने लगे, बल्कि छोटानागपुर विधि महाविद्यालय में अध्यापन के माध्यम से सैकड़ों विद्यार्थियों के जीवन को दिशा दी। 

झारखंड आंदोलन के सच्चे सिपाही 

झारखंड आंदोलन में प्रो. महतो ने मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। उन्होंने झारखंड पार्टी के उम्मीदवार के रूप में 1952 और 1957 के विधानसभा चुनाव लड़े। दोनों बार मामूली अंतर से हारने के बावजूद उनका जज्बा अटूट रहा। वे कहा करते थे चुनाव हारने से आदर्श नहीं हारते, असली जीत लोगों के दिलों में होती है। 

शिक्षा ही समाज का असली दीपक 

प्रो. महतो का दृढ़ विश्वास था सूखी रोटी खाओ, लाल चाय पियो, लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाओ। वे शिक्षा को समाज सुधार का सबसे सशक्त साधन मानते थे। उन्होंने नारी शिक्षा को विशेष महत्व दिया और कहा शिक्षित नारी ही समाज की असली शक्ति है। 

जनसेवा की मिसाल 

सिल्ली प्रखंड प्रमुख के रूप में उन्होंने कई ऐतिहासिक कार्य किये। सिंगपुर से कांटाडीह तक श्रमदान से सड़क बनवाई, गांव में बिजली पहुंचायी, किसानों के लिए सिंचाई की सुविधा करायी और बेरोजगार युवाओं को शिक्षक के रूप में रोजगार दिलाया। उन्होंने सिंगपुर (मुरी) में बनने वाले भारत माता अस्पताल के लिए अपनी जमीन दान में दी। यह उनकी मानवता और त्याग की मिसाल है। 

कुरमाली भाषा के रक्षक और प्रेरणा स्रोत 

कुरमाली भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए वे जीवनभर प्रयासरत रहे। उनके मार्गदर्शन से अनेक शोधकतार्ओं ने कुरमाली लोक-साहित्य पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 

वे चाहते थे कि रांची विश्वविद्यालय में कुरमाली भाषा का शोध केंद्र स्थापित हो और आज कुरमाली भाषा परिषद एवं बाईसी कुटुम परिषद उनके इसी सपने को साकार करने में जुटी हैं। 

युवाओं के प्रेरणास्रोत 

वे हमेशा युवाओं को प्रोत्साहित करते थे। जब नंदलाल महतो का चयन बिहार प्रशासनिक सेवा में हुआ, तो उन्होंने गर्व से कहा कि यू आर द सेकंड कुरमी आफ छोटानागपुर रीजन आफ्टर ठाकुर दास महतो! उनकी प्रेरणा ने अनगिनत युवाओं को सफलता की राह दिखायी। 

दीपावली के दिन बूझ गया एक दीपक 

एक नवंबर 1986 दीपावली की रात, जब घर-घर में दीप जल रहे थे, उसी दिन यह सादगी और सेवा का दीपक सदा के लिए बुझ गया। परंतु उनके विचार, उनके कर्म और उनके आदर्श आज भी हजारों दिलों में रौशनी फैला रहे हैं। (लेखक वरीय अधिवक्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Published / 2025-10-29 21:22:46
भारत की श्रम संहिताएं: समावेशी आर्थिक विकास की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम

चंद्रजीत बनर्जी

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। भूमि और श्रम; भारत के विकास के आधार-स्तंभ हैं— भूमि अवसंरचना और औद्योगिक विकास को गति देती है, जबकि श्रम उत्पादकता और समावेश को बढ़ावा देता है। इस संदर्भ में, भारत की नई श्रम संहिताएं एक परिवर्तनकारी कदम को रेखांकित करती हैं, 29 कानूनों को एक आधुनिक, एकीकृत संरचना में समेकित करती हैं तथा श्रम परिदृश्य में स्पष्टता, एकरूपता और समानता सुनिश्चित करती है।

श्रमिकों के लिए, ये संहिताएं मजबूत सामाजिक सुरक्षा, सुरक्षित कार्यस्थल और औपचारिक लाभों तक व्यापक पहुंच की सुविधा प्रदान करती हैं, जबकि व्यवसायों को सरलीकृत अनुपालन, कार्यबल प्रबंधन में लचीलेपन और सभी क्षेत्रों में समान अवसर का लाभ मिलता है। हालांकि अंतिम प्रभाव कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा, लेकिन ये संहिताएं भारत के श्रम बाजार को 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं।

जयपुर में वितरण सेवाओं से लेकर साणंद में तकनीकी भूमिकाओं और गुवाहाटी में निर्माण कार्य तक— विभिन्न क्षेत्रों में भारत के कार्यबल की आकांक्षा एक-जैसी है: सुरक्षित कार्य परिस्थितियों तक पहुंच, उचित पारिश्रमिक और दूसरी जगह ले जाने योग्य एवं विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा। श्रमिक चाहे कारखानों में कार्यरत हों या खेतों में, या प्लेटफॉर्म-आधारित सेवाओं से जुड़े हों, वे तीन प्रमुख आश्वासन चाहते हैं: आय स्थिरता, पूवार्नुमानित सामाजिक सुरक्षा और रोजगार में सम्मान। 

भारत की चार श्रम संहिताएं इस आकांक्षा को जीवंत वास्तविकता में बदलने के उद्देश्य से तैयार की गयी हैं, ताकि समता और सुरक्षा के सिद्धांत का कार्य जगत में अंतर्निहित होना सुनिश्चित हो सके। सुधारों के केंद्र में है - सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार। लाखों असंगठित, गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिक, जो भारत के कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, नयी व्यवस्था के तहत औपचारिक मान्यता प्राप्त करेंगे और कई सुविधाओं के पात्र बन जायेंगे। 

भविष्य निधि, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व लाभ के प्रावधान अब औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत श्रेणियों तक इनका विस्तार हो जायेगा। यह बदलाव, न केवल कमजोर श्रमिकों के लिए सुरक्षा सुविधा को मजबूत करता है, बल्कि उद्यमों को रोजगार को औपचारिक बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक सुरक्षा के समग्र आधार का विस्तार होता है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 औपचारिक रूप से गिग, प्लेटफॉर्म और असंगठित श्रमिकों को मान्यता देती है तथा केंद्र और राज्यों को उनके लिए समर्पित सामाजिक-सुरक्षा कोष स्थापित करने की सुविधा देती है। एग्रीगेटर्स को टर्नओवर का 1-2 प्रतिशत, भुगतान का अधिकतम 5 प्रतिशत, योगदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है, जो गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लाभों के वित्तपोषण का एक व्यावहारिक तरीका है।

आधार-आधारित पंजीकरण पहले ही अधिसूचित किया जा चुका है और ई-श्रम पोर्टल में 31 करोड़ से अधिक श्रमिक नामांकित हैं। प्रत्येक श्रमिक को एक सार्वभौमिक खाता संख्या (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर, यूएएन) दी गयी है, जिसके जरिये स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व सहायता, या वृद्धावस्था पेंशन जैसे लाभों को नये कार्य-स्थल में स्थानांतरित किया जा सकता है, चाहे वे कहीं भी काम करते हों। ई-श्रम रजिस्ट्री, वास्तव में, अनौपचारिक श्रमिकों के संदर्भ में भारत का पहला राष्ट्रीय डेटाबेस है— जो समावेशी विकास और आपदा सहनीयता की दिशा में एक आवश्यक कदम है।

व्यवसाय सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियां संहिता भी उतनी ही परिवर्तनकारी है, जो सुरक्षा मानदंडों को एकीकृत करती है और विशेष रूप से, महिलाओं को सहमति और सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देती है। यह प्रगतिशील उपाय महिलाओं के लिए अवसरों का विस्तार करता है, जबकि सुरक्षा को अनिवार्य बनाये रखता है। 

ओएसएच संहिता लाइसेंस और निरीक्षण प्रणालियों को भी युक्तिसंगत बनाती है, जो दंड के बजाय रोकथाम की संस्कृति को बढ़ावा देने के क्रम में जोखिम-आधारित, प्रौद्योगिकी-सक्षम अनुपालन की ओर अग्रसर है। इसी तरह, वेतन संहिता सभी क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन और समय पर भुगतान व्यवस्था को सार्वभौमिक बनाती है, चाहे उनका क्षेत्र या कौशल स्तर कुछ भी हो। 

औद्योगिक संबंध संहिता, विवाद समाधान तंत्र को मजबूत करने और सामाजिक संवाद को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। विवाद बढ़ने से पहले बातचीत, सुलह और मध्यस्थता को प्रोत्साहित करके, यह संहिता एक अधिक स्थिर औद्योगिक संबंध वातावरण का निर्माण करती है। इसके अतिरिक्त, ट्रेड यूनियन मान्यता और बड़े उद्यमों के लिए स्थायी आदेशों से संबंधित सरलीकृत नियम; नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों में पारदर्शिता और पूवार्नुमान में सुधार को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किये गये हैं। 

उद्यमों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए, श्रम संहिताओं का अर्थ है सरल अनुपालन: मानकीकृत परिभाषाएं, कम रजिस्टर, डिजिटल रूप से दाखिल करना और बहुत कम अस्पष्टता। भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह वित्त वर्ष 2021-22 में 83.6 बिलियन डॉलर रहा था और वित्त वर्ष 2024-25 में यह 81 बिलियन डॉलर के साथ मजबूत स्थिति में है। इस अवधि में, भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण सुधार लागू किए, जिनमें श्रम सुधारों का अधिनियमन भी शामिल है। वित्त वर्ष 2021-22 में पूंजीगत व्यय के लिए लगभग 13 लाख करोड़ रुपये से अधिक का उच्चतम आवंटन हुआ। 

इसके अलावा, संस्थागत नीति, डिजिटल सुधारों, देश में व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने और भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य स्थल बनाने के माध्यम से अनुपालन बोझ को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किये गये। इसी अवधि में विनिर्माण क्षेत्र में सुधार तथा सेमीकंडक्टर उद्योग, कोयला क्षेत्र, ऊर्जा और खनिज क्षेत्र को मजबूत करने से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बाजार में देश की स्थिति को और मजबूत करने में योगदान मिला। 

फिर भी, कानून पारित करना केवल आधी यात्रा है। श्रम समवर्ती सूची का विषय है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों को कार्यान्वयन के लिए नियम बनाने और अधिसूचित करने होंगे। हालांकि अधिकांश राज्यों ने चारों संहिताओं के अंतर्गत नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है, लेकिन अंतिम अधिसूचना जारी करने की गति असमान बनी हुई है। एक राष्ट्र, एक श्रम कानून व्यवस्था के विजन को साकार करने के लिए, यह आवश्यक है कि केंद्र और सभी राज्य कार्यान्वयन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ें। 

इस बदलाव को प्रभावी बनाने के लिए, कुछ प्राथमिकताएं उभर कर सामने आती हैं- 

  1. पहला, असंगठित श्रमिकों के कवरेज को क्रियान्वित करना। एग्रीगेटर्स के लिए अंशदान दरों की सूचना देना, पारदर्शी नामांकन और लाभ-वितरण प्रणालियां स्थापित करना तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक डैशबोर्ड बनाना। 
  2. प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए सिंगापुर के केंद्रीय भविष्य निधि (सीपीएफ) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मॉडल, मूल्यवान जानकारी प्रदान कर सकते हैं। दूसरा, डिजिटल अवसंरचना को वास्तविक पात्रता में बदलना। ई-श्रम, ईपीएफओ और ईएसआईसी डेटाबेस को लिंक करना, ताकि श्रमिक जहां भी जायें, लाभ उनके साथ चलें। आधार का उपयोग दूसरी जगह ले जाने की सुविधा (पोर्टेबिलिटी) के लिए किया जाना चाहिए, न कि बहिष्करण के लिए। 
  3. तीसरा, जागरूकता और क्षमता का निर्माण। 

एमएसएमई को संहिताओं को समझने के लिए हेल्प-डेस्क और सरलीकृत मार्गदर्शिकाओं की आवश्यकता है; श्रमिकों को बहुभाषी हेल्पलाइन और जमीनी सहायता की जरूरत होती है। सरकार, उद्योग निकायों और यूनियनों के संयुक्त प्रयास यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कागज पर लिखे अधिकार, लाभ-प्राप्ति में परिवर्तित होंगे। मूलत:, यह सुधार इस विश्वास पर आधारित है कि काम सुरक्षित होगा और उचित भुगतान किया जाएगा; सामाजिक सुरक्षा श्रमिक के साथ बनी रहेगी और अनुपालन इतना सरल होगा कि सभी इसमें भाग ले सकेंगे। 

इस संरचना के निर्माण के लिए सरकार प्रशंसा की पात्र है। यदि हम इन्हें गति, पारदर्शिता और सहयोग के साथ कार्यान्वयन करते हैं, तो ये संहिताएं भारत के अगले विकास अध्याय का आधार बन सकती हैं - व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्धा, श्रमिकों के लिए सम्मानजनक कार्य और निवेशकों के लिए पूर्वानुमानित व्यावसायिक वातावरण।  यही विकसित भारत का सार है - समावेश के साथ विकास और समृद्धि, जो प्रत्येक श्रमिक तक पहुंचती हो। (लेखक भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

Published / 2025-10-29 20:23:45
भारत की श्रम संहिताएं: समावेशी आर्थिक विकास की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम

चंद्रजीत बनर्जी

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। भूमि और श्रम; भारत के विकास के आधार-स्तंभ हैं— भूमि अवसंरचना और औद्योगिक विकास को गति देती है, जबकि श्रम उत्पादकता और समावेश को बढ़ावा देता है। इस संदर्भ में, भारत की नई श्रम संहिताएं एक परिवर्तनकारी कदम को रेखांकित करती हैं, 29 कानूनों को एक आधुनिक, एकीकृत संरचना में समेकित करती हैं तथा श्रम परिदृश्य में स्पष्टता, एकरूपता और समानता सुनिश्चित करती है।

श्रमिकों के लिए, ये संहिताएं मजबूत सामाजिक सुरक्षा, सुरक्षित कार्यस्थल और औपचारिक लाभों तक व्यापक पहुंच की सुविधा प्रदान करती हैं, जबकि व्यवसायों को सरलीकृत अनुपालन, कार्यबल प्रबंधन में लचीलेपन और सभी क्षेत्रों में समान अवसर का लाभ मिलता है। हालांकि अंतिम प्रभाव कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा, लेकिन ये संहिताएं भारत के श्रम बाजार को 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं।

जयपुर में वितरण सेवाओं से लेकर साणंद में तकनीकी भूमिकाओं और गुवाहाटी में निर्माण कार्य तक— विभिन्न क्षेत्रों में भारत के कार्यबल की आकांक्षा एक-जैसी है: सुरक्षित कार्य परिस्थितियों तक पहुंच, उचित पारिश्रमिक और दूसरी जगह ले जाने योग्य एवं विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा। श्रमिक चाहे कारखानों में कार्यरत हों या खेतों में, या प्लेटफॉर्म-आधारित सेवाओं से जुड़े हों, वे तीन प्रमुख आश्वासन चाहते हैं: आय स्थिरता, पूवार्नुमानित सामाजिक सुरक्षा और रोजगार में सम्मान। 

भारत की चार श्रम संहिताएं इस आकांक्षा को जीवंत वास्तविकता में बदलने के उद्देश्य से तैयार की गयी हैं, ताकि समता और सुरक्षा के सिद्धांत का कार्य जगत में अंतर्निहित होना सुनिश्चित हो सके। सुधारों के केंद्र में है - सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार। लाखों असंगठित, गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिक, जो भारत के कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, नयी व्यवस्था के तहत औपचारिक मान्यता प्राप्त करेंगे और कई सुविधाओं के पात्र बन जायेंगे। 

भविष्य निधि, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व लाभ के प्रावधान अब औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत श्रेणियों तक इनका विस्तार हो जायेगा। यह बदलाव, न केवल कमजोर श्रमिकों के लिए सुरक्षा सुविधा को मजबूत करता है, बल्कि उद्यमों को रोजगार को औपचारिक बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक सुरक्षा के समग्र आधार का विस्तार होता है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 औपचारिक रूप से गिग, प्लेटफॉर्म और असंगठित श्रमिकों को मान्यता देती है तथा केंद्र और राज्यों को उनके लिए समर्पित सामाजिक-सुरक्षा कोष स्थापित करने की सुविधा देती है। एग्रीगेटर्स को टर्नओवर का 1-2 प्रतिशत, भुगतान का अधिकतम 5 प्रतिशत, योगदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है, जो गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लाभों के वित्तपोषण का एक व्यावहारिक तरीका है।

आधार-आधारित पंजीकरण पहले ही अधिसूचित किया जा चुका है और ई-श्रम पोर्टल में 31 करोड़ से अधिक श्रमिक नामांकित हैं। प्रत्येक श्रमिक को एक सार्वभौमिक खाता संख्या (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर, यूएएन) दी गयी है, जिसके जरिये स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व सहायता, या वृद्धावस्था पेंशन जैसे लाभों को नये कार्य-स्थल में स्थानांतरित किया जा सकता है, चाहे वे कहीं भी काम करते हों। ई-श्रम रजिस्ट्री, वास्तव में, अनौपचारिक श्रमिकों के संदर्भ में भारत का पहला राष्ट्रीय डेटाबेस है— जो समावेशी विकास और आपदा सहनीयता की दिशा में एक आवश्यक कदम है।

व्यवसाय सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियां संहिता भी उतनी ही परिवर्तनकारी है, जो सुरक्षा मानदंडों को एकीकृत करती है और विशेष रूप से, महिलाओं को सहमति और सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देती है। यह प्रगतिशील उपाय महिलाओं के लिए अवसरों का विस्तार करता है, जबकि सुरक्षा को अनिवार्य बनाये रखता है। 

ओएसएच संहिता लाइसेंस और निरीक्षण प्रणालियों को भी युक्तिसंगत बनाती है, जो दंड के बजाय रोकथाम की संस्कृति को बढ़ावा देने के क्रम में जोखिम-आधारित, प्रौद्योगिकी-सक्षम अनुपालन की ओर अग्रसर है। इसी तरह, वेतन संहिता सभी क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन और समय पर भुगतान व्यवस्था को सार्वभौमिक बनाती है, चाहे उनका क्षेत्र या कौशल स्तर कुछ भी हो। 

औद्योगिक संबंध संहिता, विवाद समाधान तंत्र को मजबूत करने और सामाजिक संवाद को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। विवाद बढ़ने से पहले बातचीत, सुलह और मध्यस्थता को प्रोत्साहित करके, यह संहिता एक अधिक स्थिर औद्योगिक संबंध वातावरण का निर्माण करती है। इसके अतिरिक्त, ट्रेड यूनियन मान्यता और बड़े उद्यमों के लिए स्थायी आदेशों से संबंधित सरलीकृत नियम; नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों में पारदर्शिता और पूवार्नुमान में सुधार को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किये गये हैं। 

उद्यमों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए, श्रम संहिताओं का अर्थ है सरल अनुपालन: मानकीकृत परिभाषाएं, कम रजिस्टर, डिजिटल रूप से दाखिल करना और बहुत कम अस्पष्टता। भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह वित्त वर्ष 2021-22 में 83.6 बिलियन डॉलर रहा था और वित्त वर्ष 2024-25 में यह 81 बिलियन डॉलर के साथ मजबूत स्थिति में है। इस अवधि में, भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण सुधार लागू किए, जिनमें श्रम सुधारों का अधिनियमन भी शामिल है। वित्त वर्ष 2021-22 में पूंजीगत व्यय के लिए लगभग 13 लाख करोड़ रुपये से अधिक का उच्चतम आवंटन हुआ। 

इसके अलावा, संस्थागत नीति, डिजिटल सुधारों, देश में व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने और भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य स्थल बनाने के माध्यम से अनुपालन बोझ को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किये गये। इसी अवधि में विनिर्माण क्षेत्र में सुधार तथा सेमीकंडक्टर उद्योग, कोयला क्षेत्र, ऊर्जा और खनिज क्षेत्र को मजबूत करने से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बाजार में देश की स्थिति को और मजबूत करने में योगदान मिला। 

फिर भी, कानून पारित करना केवल आधी यात्रा है। श्रम समवर्ती सूची का विषय है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों को कार्यान्वयन के लिए नियम बनाने और अधिसूचित करने होंगे। हालांकि अधिकांश राज्यों ने चारों संहिताओं के अंतर्गत नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है, लेकिन अंतिम अधिसूचना जारी करने की गति असमान बनी हुई है। एक राष्ट्र, एक श्रम कानून व्यवस्था के विजन को साकार करने के लिए, यह आवश्यक है कि केंद्र और सभी राज्य कार्यान्वयन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ें। 

इस बदलाव को प्रभावी बनाने के लिए, कुछ प्राथमिकताएं उभर कर सामने आती हैं- 

  1. पहला, असंगठित श्रमिकों के कवरेज को क्रियान्वित करना। एग्रीगेटर्स के लिए अंशदान दरों की सूचना देना, पारदर्शी नामांकन और लाभ-वितरण प्रणालियां स्थापित करना तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक डैशबोर्ड बनाना। 
  2. प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए सिंगापुर के केंद्रीय भविष्य निधि (सीपीएफ) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मॉडल, मूल्यवान जानकारी प्रदान कर सकते हैं। दूसरा, डिजिटल अवसंरचना को वास्तविक पात्रता में बदलना। ई-श्रम, ईपीएफओ और ईएसआईसी डेटाबेस को लिंक करना, ताकि श्रमिक जहां भी जायें, लाभ उनके साथ चलें। आधार का उपयोग दूसरी जगह ले जाने की सुविधा (पोर्टेबिलिटी) के लिए किया जाना चाहिए, न कि बहिष्करण के लिए। 
  3. तीसरा, जागरूकता और क्षमता का निर्माण। 

एमएसएमई को संहिताओं को समझने के लिए हेल्प-डेस्क और सरलीकृत मार्गदर्शिकाओं की आवश्यकता है; श्रमिकों को बहुभाषी हेल्पलाइन और जमीनी सहायता की जरूरत होती है। सरकार, उद्योग निकायों और यूनियनों के संयुक्त प्रयास यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कागज पर लिखे अधिकार, लाभ-प्राप्ति में परिवर्तित होंगे। मूलत:, यह सुधार इस विश्वास पर आधारित है कि काम सुरक्षित होगा और उचित भुगतान किया जाएगा; सामाजिक सुरक्षा श्रमिक के साथ बनी रहेगी और अनुपालन इतना सरल होगा कि सभी इसमें भाग ले सकेंगे। 

इस संरचना के निर्माण के लिए सरकार प्रशंसा की पात्र है। यदि हम इन्हें गति, पारदर्शिता और सहयोग के साथ कार्यान्वयन करते हैं, तो ये संहिताएं भारत के अगले विकास अध्याय का आधार बन सकती हैं - व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्धा, श्रमिकों के लिए सम्मानजनक कार्य और निवेशकों के लिए पूर्वानुमानित व्यावसायिक वातावरण।  यही विकसित भारत का सार है - समावेश के साथ विकास और समृद्धि, जो प्रत्येक श्रमिक तक पहुंचती हो। (लेखक भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

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