एबीएन कैरियर डेस्क। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के कारण बड़ी संख्या में रोजगार खत्म होने का खतरा भयावह वास्तविकता लग रहा है, खासकर जब आप बड़ी टेक कंपनियों, बैंकिंग, बीमा, उच्च-स्तरीय विनिर्माण और यहां तक कि पर्यटन एवं होटल उद्योगों में छंटनी और नियुक्तियों में मंदी की रफ्तार पर गौर करते हैं।
बदलाव की इस तेज गति ने दुनिया को चौंका दिया है। वैसे दुनियाभर में एआई से रोजगार पर खतरे की चर्चा होने से बहुत पहले ही तकनीकी बदलाव, युद्धोत्तर वैश्विक विनिर्माण में उछाल के बाद से ही रोजगार को कम करता रहा है। अंतर यह था कि पहले बदलाव की गति अपेक्षाकृत धीमी थी। यह आईटी क्षेत्र ही था जिसने परिवर्तन की गति को तेज किया। जिस उद्योग में यह अखबार काम करता है वह इसका एक उदाहरण है।
कम से कम एक सदी तक दुनिया भर में अखबारों के पन्ने हॉट मेटल प्रेस में छापे जाते थे, जिसके लिए मेटल स्लग को उल्टा पढ़ने में एक अनूठे स्तर के उप-संपादकीय कौशल की आवश्यकता होती थी। पश्चिमी देशों में यह तकनीक 1960 और 1980 के दशक के बीच धीरे-धीरे समाप्त हो गई (न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह बदलाव 1978 में ही किया)। भारत ने 1980 के दशक की शुरूआत से मध्य तक इस चरण में प्रवेश किया, जब हॉट मेटल की जगह कोल्ड प्रेस या फोटो-टाइपसेटिंग ने ले ली।
कंपोजरों द्वारा संचालित पुराने आयरन मॉन्स्टर्स की खटर-पटर की जगह ग्रीन-स्क्रीन वाले कंप्यूटरों की वातानुकूलित सेटिंग और प्रूफ तैयार करने वाले डॉट मैट्रिक्स प्रिंटरों की हल्की-फुल्की आवाज ने ले ली। इस बदलाव के साथ कुछ नौकरियां भी गयीं क्योंकि जो पेज-सेटर कंप्यूटर टाइपिंग नहीं कर पाए उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया (इसके साथ ही कुछ हद तक औद्योगिक अशांति भी हुई)। लेकिन दैनिक रचना प्रक्रिया की बुनियादी बातें कमोबेश बरकरार रहीं।
रिपोर्टर अपनी कॉपी को रिसाइकल किए हुए अखबारी कागज पर बड़े-बड़े टाइपराइटरों में लगाते थे, जिन्हें चलाने के लिए ताकत लगानी होती थी। फिर इन्हें अंग्रेजी के एच वर्ण की आकृति के डेस्क पर भेजा जाता था, जहां उप-संपादक, वरिष्ठ उप-संपादक और मुख्य उप-संपादक काम करते थे, जो कॉपी का फिर से उन्हीं विशाल टाइपराइटरों पर संपादन या पुनर्लेखन करते थे। संपादित कॉपी फिर कंपोजर के पास जाती और फिर प्रूफ के रूप में प्रूफ रीडर के पास लौटती, जो कभी-कभी अगर रचना की गुणवत्ता मानक के अनुरूप नहीं होती थी तो दूसरे प्रूफ की मांग करता था।
सही की गई प्रतियों को फिर अंधेरे कमरों में गैली या पुल में बदल दिया जाता था। पेज लेआइट के लिए प्रोसेसिंग उप-संपादकों के अब के समय रहस्यमय प्रतीत होने वाले निदेर्शों पर आधारित होती थी-मसलन एस/सी, 11 ईएमएस या डी/सी 22 ईएमएस, बीएलडी आदि। पेज लेआउट को पुराने समय के रूलर और पेंसिल से आठ-कॉलम ग्राफ पेपर पर तैयार किया जाता था।
अपेक्षाकृत नया पेशा पेस्ट-अप कार्मिकों का था, जो पेट्रोलियम पदार्थ मिले हुए गोंद के मिश्रण का उपयोग करके अखबार के आकार के कागज पर गैली को काटते और चिपकाते थे, जिसकी सुगंध हल्की नशीली होती थी। इन विशाल पृष्ठों को एक अंधेरे कमरे में भेजा जाता था जहां सफेद कोट पहने कार्मिक उन पर कुछ रसायन लगाते हुए प्रोसेस करते थे। उसके बाद अगले दिन के संस्करण की प्रिटिंग के लिए उन्हें शोर करती मशीनों में भेजा जाता था।
एक दशक से भी कम समय में इस व्यवस्था को उन बदलावों ने खत्म कर दिया जो ज्यादा गहरे और स्थायी थे, लेकिन कम ध्यान आकृष्ट करने वाले थे। पेज-मेकिंग सॉफ्टवेयर ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया, जिससे समाचार कॉपी को नेटवर्क वाले कंप्यूटरों पर लिखा और संपादित किया जा सकता था और सीधे ऑनलाइन पेज ग्रिड में एक्सपोर्ट किया जा सकता था, साथ ही ऑनलाइन सॉफ्टवेयर का उपयोग करके तस्वीरों को भी प्रोसेस किया जा सकता था।
इस बदलाव ने एक ही झटके में चार तरह की नौकरियां खत्म कर दींकंपोजर, प्रूफ-रीडर, पेस्ट-अप मैन और यहां तक कि डार्क-रूम असिस्टेंट जो पन्नों पर चिपकायी गयी तस्वीरों को प्रोसेस करते थे। दिलचस्प यह है कि समाचार पत्र व्यवसाय में यह बदलाव बिना किसी खास औद्योगिक अशांति के हुआ, और वह भी ऐसे समय में जब भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कर्मचारी संघ कंप्यूटरीकरण की शुरूआत का विरोध कर रहे थे।
धीरे-धीरे, सॉफ्टवेयर डेस्क प्रोड्यूसर के जीवन पर हावी होता जा रहा है। अगर आप एमएस वर्ड इस्तेमाल करते हैं, तो सॉफ्टवेयर वर्तनी की गलतियों और व्याकरण संबंधी अशुद्धियों को भी रेखांकित कर देता है, जिससे आपकी संपादन और प्रूफ-रीडिंग क्षमता में सुधार होता है। ईमेल सेवाओं में परिष्कृत प्रूफिंग और संपादन सुविधाएं अंतर्निहित होती हैं। ऐसे ही एक उदाहरण में एक ने तो रामलिंग राजू नाम की गलत वर्तनी भी सुधार दी।
अब, एआई कॉपी का संपादन और पुनर्लेखन कर सकता है, हालांकि हमेशा सर्वोत्तम परिणामों के साथ नहीं। उदाहरण के लिए, कुत्तों के आश्रयों के बारे में एक लेख को पाठकों के लिए अधिक अनुकूल बनाने के निर्देश में केवल दो जगह हास्यास्पद बदलाव करने पड़े: डॉग ओनर्स यानी कुत्तों के मालिक पालतू माता-पिता बन गये थे और पेट्स यानी पालतू जानवर हमारे प्यारे दोस्त बन गये।
पत्रकारिता के पेशे पर सबसे ज्यादा असर गूगल और ऑनलाइन मीडिया के उदय का पड़ा है।
क्लिपिंग लाइब्रेरी, जहां से संपादक अपना शोध करते थे, गायब हो गई। गूगल का सर्च इंजन निस्संदेह सूचना उद्योग के लिए एक वरदान साबित हुआ है। लेकिन इसी सर्च इंजन पर आधारित डिजिटल विज्ञापन बाजार में इस तकनीकी दिग्गज के व्यापक प्रभुत्व ने विज्ञापन को प्रिंट मीडिया और टीवी जैसे पारंपरिक माध्यमों से दूर कर दिया है। ऑनलाइन मीडिया के इस समवर्ती विस्फोट के कारण, जिसमें बहुत कम निवेश की आवश्यकता होती है, हजारों अखबार बंद हो गये हैं।
अकेले अमेरिका में ही लगभग 3,000 अखबार आईटी के दोहरे हमले के कारण बंद हो गए हैं, और परिणामस्वरूप आधे से ज्यादा पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया गया है। सौभाग्य से, भारत अभी भी इस चलन से अलग है। हमें बताया जा रहा है कि पत्रकारों के लिए अगला खतरा एआई की समाचार रिपोर्ट, संपादन और कॉलम लिखने की क्षमता से आ सकता है। इसका अभी पूरी तरह से परीक्षण होना बाकी है और शुरुआती प्रयोगों में सत्यापित तथ्यों के बजाय ढेर सारी कल्पनाएं सामने आई हैं।
निकट भविष्य में संपादन और पुनर्लेखन का पेशा, जो कभी अखबारी पत्रकारिता की रीढ़ हुआ करता था, कमजोर पड़ सकता है। लेकिन क्या एआई कभी जमीनी स्तर पर या किसी खबर के लिए सत्ता के गलियारों में इंतजार कर रहे किसी संवाददाता की जगह ले पायेगी? आप सोचेंगे ऐसा नहीं होगा, लेकिन संवेदना के साथ एआई एक नई ताकत के रूप में उभर रही है, ऐसे में अभी कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता है।
टीम एबीएन, रांची। 26 नवंबर संविधान दिवस के शुभ अवसर पर, छोटानागपुर लॉ कॉलेज, रांची (स्वायत्त) में कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर डॉ पंकज कुमार चतुर्वेदी ने शिक्षकगणों के साथ मिलकर विद्यार्थियों को भारतीय संविधान की उद्देशिका की शपथ दिलायी।
इस क्रम में, उन्होंने उद्देशिका में वर्णित शब्दों सार्वभौम, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणराज्य का अर्थ और महत्त्व भी समझाया, जो भारतीय संविधान के स्वरूप को प्रदर्शित करते हैं। इसके उपरांत, परिसर में स्थापित संविधान सभा की प्रति पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गयी।
मौके पर कॉलेज ने संविधान सभा और कॉलेज के प्रति सम्मान स्वरूप रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया। कॉलेज के कर्मचारियों और अनेक विद्यार्थियों ने स्वेच्छा से रक्तदान किया।
एबीएन न्यूज नेटवर्क, जमशेदपुर। झारखंड के जमशेदपुर में स्थित सीएसआईआर-राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (सीएसआईआर-एनएमएल) ने आज अपने प्लेटिनम जुबिली स्थापना दिवस का उत्सव मनाया।
वर्ष 1950 में राष्ट्र को समर्पित सीएसआईआर-एनएमएल, परिषद के प्रथम महानिदेशक और दूरदर्शी वैज्ञानिक सर शांति स्वरूप भटनागर द्वारा स्थापित शुरुआती प्रयोगशालाओं में से एक है। मौके पर वर्तमान महानिदेशक और इस पद को संभालने वाली पहली महिला, डॉ एन कलैसेल्वी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थीं।
टीम एबीएन, रांची। एसआर डीएवी पब्लिक स्कूल, पुंदाग में धूमधाम से संविधान दिवस मनाया गया। मौके पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गये। विद्यार्थियों ने संविधान पर आधारित सूचनापट्ट साज-सज्जा के साथ प्रदर्शित किया।
समाज विज्ञान विभाग ने विशेष प्रार्थना का आयोजन किया। जिसमें विद्यार्थियों ने संविधान के संबंध में अनेक रोचक जानकारियां दीं। संविधान के प्रस्तावना का पाठ किया तथा संविधान के पालन की शपथ भी ली।
कक्षा नवम से द्वादश तक के विद्यार्थियों ने मॉक पार्लियामेंट में भाग लेकर एनआरसी और सीसीए मुद्दे पर जोरदार बहस किया, जिसमें कक्षा द्वादश के आयुष यादव को सर्वश्रेष्ठ वक्ता का पुरस्कार प्रदान किया गया।
प्राचार्य डॉ तापस घोष ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि हम सभी को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक तथा कर्तव्यों के प्रति सचेत रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम जागरूकता उत्पन्न करने के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
उन्होंने समाज विज्ञान विभाग को बधाई देते हुए कहा कि भविष्य में भी ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए। प्रार्थना सभा में सभी शिक्षक, शिक्षिकाएं और विद्यार्थी उपस्थित थे। सभा का समापन राष्ट्र गान के साथ हुआ।
एबीएन न्यूज नेटवर्क, पलामू। श्री सर्वेश्वरी समूह, कुंदरी (पलामू) शाखा के मंत्री प्रीतम कुमार सिंह उर्फ डब्लू सिंह के पिता मनोहर सिंह का मंगलवार की रात निधन हो गया। मनोहर सिंह कुंदरी स्थित अवधेश कुमार सिंह इंटर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य थे। वे 69 वर्ष के थे। रविवार को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गयी थी।
बेहतर इलाज के लिए उन्हें रांची ले जाया गया था, जहां मंगलवार को इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी। बुधवार को उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव मुरूबार में किया गया। मुखाग्नि उनके पुत्र प्रीतम सिंह ने दी।
पूर्व प्राचार्य के निधन पर कई लोगों ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है, जिनमें पूर्व प्राचार्य राम किशोर पांडेय, अनुराग सिंह, अन्ना डीएम पाल, सुधीर सिंह सहित कई लोगों के नाम शामिल हैं।
टीम एबीएन, रांची। झारखंड राज्य के बहुप्रतिष्ठित विधिक संस्थान, छोटानागपुर विधि महाविद्यालय, रांची में 21 से 23 नवंबर तक प्रथम एम एम बनर्जी राष्ट्रीय मूटकोर्ट प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें भारत के 16 राज्यों के विभिन्न विश्वविद्यालय से आयी 32 टीमों ने भाग लिया एवं दिल्ली विश्वविद्यालय तथा नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रांची, सरला बिरला विश्वविद्यालय रांची एवं उषा मार्टिन विश्वविद्यालय, रांची की टीमों के मध्य सेमीफाइनल मुकाबले का आयोजन हुआ। जिसमें उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय एवं नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रांची की टीमों को फाइनल में जगह मिली।
फाइनल मैच में झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति डॉक्टर एस एन पाठक, जयप्रकाश अपर महाधिवक्ता झारखंड राज्य और रुपेश सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता झारखंड उच्च न्यायालय प्रतियोगिता के न्यायाधीश के रूप में उपस्थित रहे जिसमें प्रतिभागियों ने विधि के सूक्ष्म बिंदुओं पर न्यायालय के समक्ष बहस की, जिसमें निकिता सिंह, पूजा कुमारी और दीक्षा पांडे के द्वारा गठित की गयी दिल्ली यूनिवर्सिटी के टीम को उपविजेता तथा अदिति वर्मा, इलाही सिंह तथा सुहानी सुगंधा के द्वारा गठित की गई नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रांची की टीम को विजेता घोषित किया गया।
समापन समारोह में झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी द्वारा प्रतियोगिता की विजेता टीम ( ठवरफछ) रांची को ट्राफी एवं 30000 की धनराशि से पुरस्कृत किया गया। उपविजेता टीम को झारखंड न्यायालय के न्यायमूर्ति दीपक रोशन द्वारा ट्रॉफी एवं 25000 के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इसके साथ ही साथ झारखंड उच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायमूर्ति एस एन पाठक द्वारा उत्कृष्ट शोधकर्ता के रूप में रांची के छात्र अभिनव को ट्रॉफी एवं 15000 की धनराशि से सम्मानित किया गया, इसके अतिरिक्त रांची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डी के सिंह द्वारा उत्कृष्ट वक्त के रूप में श्रंखला, छात्र उषा मार्टिन यूनिवर्सिटी, रांची को ट्राफी एवं 15000 की धनराशि से सम्मानित किया गया।
इसके साथ ही साथ झारखंड उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता रूपेश सिंह द्वारा सांत्वना पुरस्कार के रूप में सेकंड रनरउप सरला बिरला विश्वविद्यालय की टीम को ?5000 की धनराशि से व्यक्तिगत रूप से सम्मानित किया गया और प्रतियोगिता की उपविजेता टीम दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रथम स्पीकर निकिता सिंह को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए पूर्व न्यायमूर्ति डॉक्टर एस एन पाठक द्वारा 5000 की धनराशि से व्यक्तिगत रूप से सम्मानित किया गया।
समापन समारोह में न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी ने एम एम बनर्जी की प्रशंसा की एवं अपने छात्र जीवन में मूट कोर्ट के अनुभव को साझा किया और यह स्पष्ट किया कि न्यायाधीश और अधिवक्ता प्रत्येक दिन सीखते हैं, इन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए यह कहा कि प्रथम तारीख पर न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने पर वह अत्यधिक भयभीत थे किंतु निरंतर प्रयास से साहस की वृद्धि हुई और वह इस बड़े पद पर आसीन हो पाए।
महोदय ने कहा कि अधिवक्ता के रूप में भविष्य के सृजन हेतु मूड कोर्ट जैसी प्रतियोगिता की भूमिका अहम है जिसे न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का साहस निर्मित होता है और दिन प्रतिदिन अध्ययन आवश्यक है क्योंकि विधि परिवर्तनशील है मूट प्रतियोगिता को एक एकेडमिक एक्सरसाइज नहीं है अपितु यह अधिवक्ता के निर्माण में मील का पत्थर सिद्ध हो सकती है।
न्यायमूर्ति दीपक रोशन ने यह स्पष्ट किया कि विधि के व्यवसाय में प्रवेश करने हेतु मूड कोर्ट की भूमिका सर्वांगीण एवं अधिवक्ता सदैव ही छात्र रहता है तथा जीवन में अथक परिश्रम ही सफलता प्राप्त करने की कुंजी है।
पूर्व न्यायमूर्ति एस एन पाठक ने स्पष्ट किया कि इसी वर्ष जनवरी में सेवानिवृत होने के पश्चात आज महाविद्यालय में न्यायाधीश के रूप में उपस्थित होकर उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो उनके सामने वास्तविक अधिवक्ता बहस कर रहे हो और यह पूर्ण पीठ के समक्ष हो रही बहस हो, इसके अतिरिक्त महोदय द्वारा स्पष्ट किया गया कि यदि छात्र भावी जीवन में अधिवक्ता के रूप में अपनी जीत को सिद्ध करना चाहते हैं तो उन्हें अपने बहस के दौरान आत्मविश्वास से लबरेज होना चाहिए तभी वह मामले को अपने पक्ष में ला सकते हैं।
आगे बढ़ते हुए महोदय ने कहा कि जीत एवं हार किसी भी प्रतियोगिता के दो निष्कर्ष हैं जो प्रसन्नता देते हैं किंतु सबसे बड़ी प्रसन्नता ऐसी सहभागिता में भाग लेने से है जिससे जीवन में निरंतर सिख प्राप्त होती है। साथ ही साथ महोदय ने एम एम बनर्जी के योगदान को याद किया और उनकी प्रशंसा की।
रांची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डीके सिंह ने अपने वक्तव्य में प्रतियोगिता की सफलता का श्रेय संस्थान के प्रिंसिपल प्रोफेसर डॉक्टर पंकज कुमार चतुवेर्दी एवं उनकी टीम को दिया।
झारखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संघ की अध्यक्ष रितु कुमार ने झारखंड के प्रथम महाधिवक्ता एम एम बनर्जी के जीवन और उनके विधि क्षेत्र में किए गए योगदान को याद किया और उनकी दूरदर्शिता को स्पष्ट किया, महोदय ने आगे कहां की विधि के क्षेत्र भविष्य के निर्माण में क्लासरूम लर्निंग के साथ ही साथ मूट कोर्ट जैसे प्रतियोगिता में भाग लेना आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा वास्तविक न्यायालय की वास्तविक प्रक्रिया से रूबरू होने का अवसर तो प्राप्त होता ही है साथ ही साथ साहस में उच्च कोटि का विकास होता है।
एबीएन कैरियर डेस्क। एसआर डीएवी पब्लिक स्कूल, पुंदाग में सीबीएसई सीओई पटना के तत्वावधान में 21 - 22 नवंबर को दो दिवसीय करियर काउंसेलिंग विषय पर शिक्षण क्षमता संवर्धन कार्यशाला का शुभारंभ किया गया।
प्राचार्य डॉ तापस घोष ने दोनों संसाधकों; आलोक कुमार पाठक तथा लिपिका पात्रा के साथ ज्ञान दीप प्रज्वलित करके कार्यशाला का शुभारंभ किया। प्रथम दिवस पर दोनों संसाधकों ने क्रियाकलाप आधारित प्रस्तुति दी, जिनमें 60 शिक्षक-शिक्षिकाओं ने सक्रियतापूर्वक भाग लिया। पांच घंटे के कार्यक्रम में करियर काउंसेलिंग विषय के विविध पहलुओं पर विस्तार से चर्चा - परिचर्चा की गई।
साथ ही प्रश्नोत्तरी, केस स्टडी, परियोजना, अभिनय सहित विविध गतिविधियों पर आधारित क्रियाकलाप आयोजित किए गए, जिनकी मदद से विषय को सुग्राह्य बनाया जा सका।निश्चय ही यह कार्यक्रम अध्यापक समुदाय के लिए लाभप्रद रहा , जिनकी मदद से विद्यार्थियों को लाभ पहुंचाया जाएगा।
प्राचार्य डॉ तापस घोष ने शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि हम सी.बी.एस.ई पटना के सीओई के आभारी हैं कि उनकी ओर से हमें यह सुअवसर प्रदान किया गया। करियर काउंसेलिंग विषय विद्यार्थियों के लिए महत्त्वपूर्ण तथा आवश्यक है।
इससे उनमें सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होगा तथा इससे उन्हें अपने भविष्य को सुनहरा बनाने का सुअवसर भी प्राप्त होगा। वे अपने लिए उचित करियर का चुनाव कर सकेंगे। ऐसे सत्रों का नियमित आयोजन सभी शिक्षकों के लिए अत्यंत लाभप्रद हैं।उक्त कार्यशाला में 12 समूहों में शिक्षक - शिक्षिकाओं को बांटकर विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से प्रशिक्षण दिया गया।
टीम एबीएन, रांची। अपनी स्थापना के नौ वर्ष बाद झारखंड रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय ने आज रांची विश्वविद्यालय के दीक्षांत मंडप में अपना पहला दीक्षांत समारोह आयोजित किया।
वर्ष 2016 में स्थापित इस विश्वविद्यालय के इतिहास में आज का दिन एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में दर्ज हो गया। समारोह में कुलाधिपति एवं राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। वहीं, केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ और झारखंड के उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री सुदिव्य कुमार विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए।
विश्वविद्यालय के फॉरेंसिक साइंस, साइबर सिक्योरिटी, सिक्योरिटी मैनेजमेंट, एमएससी इन फॉरेंसिक साइंस, एमए/एमएससी इन क्रिमिनोलॉजी के छात्रों को डिग्री प्रदान की गई। कुल 673 विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया, जिनमें से 21 मेधावी छात्रों को गोल्ड मेडल दिया गया। इसमें यूजी के 2019 के बाद और पीजी के 2020 के बाद पासआउट विद्यार्थी शामिल हैं।
Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.
टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।
© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse