एबीएन सेंट्रल डेस्क। अब तक, लाल चंदन संरक्षण के लिए पहुंच तथा लाभ साझाकरण (एबीएस) तंत्र के तहत 101 करोड़ रुपये से अधिक बांटे जा चुके हैं, जिससे एनबीए का कुल एबीएस वितरण 127 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) ने 11.12.2025 को जैव विविधता अधिनियम, 2002 के पहुंच तथा लाभ साझाकरण (एबीएस) तंत्र के तहत लाभार्थियों के लिए 6.2 करोड़ रुपये जारी किये। यह धनराशि संकटग्रस्त लाल चंदन के संरक्षण का समर्थन करेगी और पांच राज्यों में किसानों तथा वन-निर्भर समुदायों की आजीविका को सशक्त बनायेगी।
पहुुंच तथा लाभ साझाकरण निधि राज्य वन विभागों, राज्य जैव विविधता बोर्डों और लाल चंदन उगाने वालों को जारी की गयी है, जो इस देशज और वैश्विक रूप से मूल्यवान प्रजाति की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नवीनतम वितरण लाल चंदन के सतत संरक्षण और जिम्मेदार उपयोग को समर्थन देता है।
जारी किये गये 6.2 करोड़ रुपये में से, तेलंगाना के किसानों को 17.8 लाख रुपये और आंध्र प्रदेश के किसानों को 1.1 करोड़ रुपये मिलेंगे। तमिलनाडु वन विभाग को 2.98 करोड़ रुपये, कर्नाटक वन विभाग को 1.05 करोड़ रुपये, महाराष्ट्र वन विभाग को 69.2 लाख रुपये और तेलंगाना वन विभाग को 5.8 लाख रुपये प्राप्त होंगे। इसके अतिरिक्त, 16.0 लाख रुपये संबंधित राज्य जैव विविधता बोर्डों में बांटे जायेंगे।
इस नवीनतम किस्त के साथ ही, लाल चंदन संरक्षण के लिए विशेष रूप से वितरित की गयी कुल एबीएस निधि, इस प्रजाति के लिए अइर तंत्र लागू किये जाने के बाद से अब तक, 101 करोड़ रुपये से अधिक हो गयी है। अब तक, लाल चंदन एबीएस तंत्र के तहत 216 व्यक्तिगत किसानों को लाभ हुआ है, जिसमें से 198 आंध्र प्रदेश के और 18 तमिलनाडु के किसान हैं। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा के वन विभाग और राज्य जैव विविधता बोर्ड भी लाभान्वित हुए हैं।
यह निधि फ्रंटलाइन सुरक्षा, उन्नत पैट्रोलिंग तथा निगरानी अवसंरचना, शोध-आधारित वनस्पति प्रबंधन पद्धतियों को लागू करने, समुदाय आधारित आजीविका कार्यक्रमों का विस्तार करने, और लाल चंदन उगाने वालों की सामाजिक-आर्थिक क्षमता को बढ़ाने के लिए उपयोग की जायेगी।
इस वितरण के साथ ही, एनबीए का कुल एबीएस निधि वितरण 127 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है, जो जैविक संसाधनों से जुड़े न्यायसंगत और समान लाभ-साझाकरण के कार्यान्वयन में भारत की वैश्विक नेतृत्व वाली भूमिका को मजबूत करता है।
यह कदम राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्ययोजना 2024-2030 के लक्ष्य-13 को प्राप्त करने और लक्ष्य-19 के तहत जैव विविधता संरक्षण के लिए वित्तीय संसाधनों को जुटाने की दिशा में सहायक है, साथ ही कुन्मिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढांचे (जैविक विविधता सम्मेलन) के उद्देश्यों को आगे बढ़ाता है।
यह वितरण इस बात का प्रमाण है कि कैसे जैव विविधता अधिनियम के एबीएस प्रावधान संरक्षण को सतत आजीविका के अवसर में बदल सकते हैं। ये कदम एबीएस सिद्धांतों को व्यावहारिक, परिणामोन्मुखी ढंग से लागू करने में भारत की नेतृत्व की भूमिका को रेखांकित करते हैं, जो पारिस्थितिक सुरक्षा और सतत् आजीविका को सुदृढ़ बनाते हैं।
टीम एबीएन, रांची। झारखंड में नकली और प्रतिबंधित दवाओं के अवैध कारोबार को रोकने के लिए अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) ने एक विशेष निर्देश जारी किया है। सीआईडी के आईजी ने सभी जिले के डीसी और एसपी को तत्काल प्रभाव से ड्रग इंस्पेक्टर और पुलिस की संयुक्त टीम बनाकर एक विशेष अभियान चलाने का आदेश दिया है।
यह कदम झारखंड हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका (डब्ल्यू.पी.(पीआईएल) न.-6691 ऑफ 2025, सुनील कुमार महतो बनाम झारखंड राज्य व अन्य) के संदर्भ में उठाया गया है, जिसमें नकली और नियंत्रित दवाओं के अवैध वितरण की गंभीर अनियमितताओं की जांच का आग्रह किया गया था। इस अभियान के तहत जिले के सभी मेडिकल दुकानें, थोक और खुदरा विक्रेता की स्टॉक पंजी, खरीद-बिक्री दस्तावेजों का मिलान और जांच की जाएगी।
खासकर बिना चिकित्सीय सलाह के नियंत्रित दवाओं की बिक्री पर कड़ी नजर रखी जाएगी। अनियमितता मिलने पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी और अभियान की सभी रिपोर्ट सीआईडी को तत्काल प्रस्तुत करनी होगी।
टीम एबीएन, रांची। प्रवर्तन निदेशालय ने बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश के तीन शहरों में छापेमारी की है। ये कार्रवाई झारखंड के एक पोंजी घोटाले से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग जांच के तहत की गई, जिसमें निवेशकों से करीब 300 करोड़ रुपये की ठगी का आरोप है। अधिकारियों के अनुसार, नोएडा, गाजियाबाद और मेरठ में कम से कम 20 ठिकानों पर तलाशी ली जा रही है।
यह मामला मैक्सीजोन पोंजी स्कीम से जुड़ा है, जिसे कथित रूप से चंद्र भूषण सिंह और प्रियंका सिंह नाम के दो लोगों ने संचालित किया था।दोनों आरोपी कुछ महीने पहले झारखंड पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये थे और फिलहाल न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं।
इस कार्रवाई को संघीय जांच एजेंसी ईडी के रांची जोनल कार्यालय द्वारा संचालित किया जा रहा है। अधिकारियों ने बताया कि इस पोंजी स्कीम के माध्यम से निवेशकों को अवास्तविक मुनाफे का लालच देकर 300 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की गयी थी।
टीम एबीएन, रांची। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने विदेश में कथित रूप से अघोषित संपत्ति रखने के मामले में रांची के एक चार्टर्ड अकाउंटेंट और उसके सहयोगियों के खिलाफ मंगलवार को छापे मारे। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
अधिकारियों ने बताया कि चार्टर्ड अकाउंटेंट और संदिग्ध हवाला आपरेटर नरेश कुमार केजरीवाल, उनके कुछ पारिवारिक सदस्यों और सहयोगियों के रांची, मुंबई और सूरत स्थित परिसरों की विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के प्रावधानों के तहत तलाशी ली जा रही है।
ईडी के अधिकारियों ने बताया कि यह कार्रवाई आयकर विभाग के निष्कर्षों के आधार पर की गयी है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि नरेश कुमार केजरीवाल का संयुक्त अरब अमीरात, नाइजीरिया और अमेरिका में अघोषित विदेशी मुखौटा संस्थाओं पर नियंत्रण हैं और इनका प्रबंधन भारत से प्रभावी ढंग से किया जाता है।
उन्होंने बताया कि इन परिसंपत्तियों में 900 करोड़ रुपये से अधिक की अघोषित राशि जमा है और संदेह है कि लगभग 1,500 करोड़ रुपये फर्जी टेलीग्राफिक हस्तांतरण के माध्यम से भारत में वापस भेजे गये।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। भारत सरकार ने लोकप्रिय मैसेजिंग ऐप्स—WhatsApp, Telegram, Signal, Snapchat, ShareChat, JioChat, Arattai और Josh—के लिए बड़े बदलावों की घोषणा की है। दूरसंचार विभाग (DoT) ने आदेश जारी किया है कि अब कोई भी यूज़र सक्रिय SIM कार्ड के बिना इन सेवाओं का उपयोग नहीं कर सकेगा। यह प्रावधान टेलीकम्युनिकेशन Cybersecurity Amendment Rules 2025 के तहत लागू किया गया है, जिसमें पहली बार ऐप-आधारित मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म्स को टेलीकॉम सेवाओं की श्रेणी में रखा गया है।
सरकार का तर्क है कि इससे ऐसे अपराधियों पर रोक लगेगी जो निष्क्रिय या फर्जी SIM का उपयोग करके धोखाधड़ी और साइबर अपराध करते हैं।
सरकार के अनुसार मौजूदा व्यवस्था में बड़ी खामी यह थी कि एक बार नंबर वेरिफाई होने के बाद मैसेजिंग ऐप्स SIM हट जाने या निष्क्रिय होने पर भी चलते रहते थे। COAI का कहना है कि इंस्टॉलेशन के समय सिर्फ एक बार SIM-बाइंडिंग होती है, लेकिन उसके बाद ऐप SIM की उपस्थिति की जांच नहीं करता।
इस ढिलेपन का फायदा साइबर अपराधियों को मिलता था—वे SIM बदलकर या उसे डिसेबल कराकर भी ऐप्स का इस्तेमाल जारी रखते थे, जिससे कॉल रिकॉर्ड, लोकेशन लॉग या कैरियर डेटा के आधार पर उनकी ट्रेसिंग मुश्किल हो जाती थी।
सरकार का दावा है कि लगातार SIM-बाइंडिंग से यूज़र, नंबर और डिवाइस के बीच संबंध मजबूत होगा, जिससे स्पैम, फ्रॉड और मैसेजिंग आधारित वित्तीय अपराधों पर प्रभावी रोक लगेगी। सरकार यह भी बताती है कि UPI और बैंकिंग ऐप्स में पहले से ही SIM वेरिफिकेशन अनिवार्य है। SEBI ने भी ट्रेडिंग अकाउंट्स के लिए SIM लिंकिंग और फेस रिकग्निशन का प्रस्ताव रखा था।
टीम एबीएन, रांची। झारखंड में जल्द ही नगर निकाय चुनाव कराये जायेंगे। नगर निकाय चुनाव से पहले राज्य निर्वाचन आयोग ने कई निर्देश जारी किये हैं। जारी निर्देश में कहा गया है कि दो से अधिक संतान और बकाया कर वाले नगर निकाय चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
निर्देश में कहा है कि झारखंड में होने वाले नगर निकाय चुनाव में दो से अधिक संतान वाले वैसे लोग उम्मीदवार नहीं बन पाएंगे, जिनके आखिरी संतान का जन्म 9 फरवरी 2013 के बाद हुआ हो।
तीन से अधिक संतान की स्थिति में चुनाव लड़ने की अयोग्यता से संबंधित नियम को लेकर आयोग की ओर से जारी आदेश की प्रति उपायुक्त को भेजकर उन्हें इसका पालन सुनिश्चित कराने को कहा गया है।
पत्र में कहा है कि दो से अधिक संतान वाला व्यक्ति भी नगरपालिका के किसी पदधारी का निर्वाचन लड़ने के लिए अयाेग्य होगा। परंतु यदि उसके दो से अधिक संतान 9 फरवरी 2013 तक या उसके पूर्व थे और बाद में उसमें कोई वृद्धि नहीं हुई है तो वह अयोग्य नहीं होगा। इस संबंध में भी यह स्पष्ट किया जाता है कि संतानों की संख्या में गोद लिए गए संतान एवं जुड़वा संतानों को भी सम्मिलित किया जायेगा।
टीम एबीएन, रांची। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शुक्रवार को कारोबारी अनिल गोयल के कार्यालय पर की गई तलाशी कार्रवाई पूरी कर ली।
जांच एजेंसी की टीम कार्यालय से बाहर निकलते समय कई अहम दस्तावेज़ अपने साथ ले गई। ईडी ने चार अलग-अलग कार्टन में भरे हुए कई कागज़ी दस्तावेज़, डिजिटल रिकॉर्ड और विभिन्न प्रकार की फाइलें बरामद की हैं।
जब्त सामग्री की प्राथमिक जांच शुरू कर दी गई है, जिसे आगे की पूछताछ और वित्तीय अनियमितताओं की जांच में उपयोग किया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि बरामद दस्तावेज़ मामले की जांच के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत राज्य विधानसभा की तरफ से पास किए गए बिलों को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीम तय नहीं कर सकते। सीजेआई बीआर गवई की अगुवाई वाली पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से भेजे गये 14 सवालों का जवाब देते हुए अपनी राय दी है।
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को राष्ट्रपति के उस संदर्भ पर अपना फैसला सुनाया है, जिसमें पूछा गया था कि क्या कोई सांविधानिक अदालत, राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय कर सकती है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक दलीलें सुनीं और 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों पर अनुमोदन देने के लिए न्यायपालिका कोई समयसीमा तय नहीं कर सकती। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने राष्ट्रपति की तरफ से अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गये 14 संवैधानिक प्रश्नों पर अपनी राय देते हुए कहा कि यह विषय संवैधानिक पदाधिकारियों के विवेक और संघीय ढांचे की मर्यादा से जुड़ा है।
अदालत ने माना कि विधायी प्रक्रिया में राष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका संवैधानिक कर्तव्य है, पर न्यायिक हस्तक्षेप के जरिए इसकी समय सीमा तय नहीं की जा सकती। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि अत्यधिक देरी लोकतांत्रिक शासन की आत्मा को क्षति पहुंचाती है, इसलिए इन पदों से अपेक्षा है कि वे उचित समय के भीतर निर्णय लें।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई में संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी। उन्होंने पूछा था कि क्या न्यायालय यह तय कर सकता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को बिलों पर कब तक निर्णय लेना चाहिए। राष्ट्रपति ने अपने पांच पन्नों के संदर्भ पत्र में 14 सवाल रखे हैं, जिनका जवाब सुप्रीम कोर्ट से मांगा गया है। यह सवाल मुख्य रूप से अनुच्छेद 200 और 201 से जुड़े हैं, जिनमें राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों का जिक्र है।
8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु विधानसभा से पास हुए बिलों पर फैसला देते हुए पहली बार यह कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल की तरफ से भेजे गए किसी भी बिल पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। यह फैसला अपने आप में ऐतिहासिक माना गया क्योंकि इससे पहले ऐसी कोई समय सीमा तय नहीं थी।
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